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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैजयन्तिका १०२६ वैद्यः वैजयन्तिका (स्त्री०) ध्वज, पताका, झण्डा मुक्ताहार। वैजयन्ती (स्त्री०) [विजयन्त+अण+ङीप] पताका, ध्वजा। (जयो० ३/८६, सुद० २/२०) चिह्न, प्रतीक। उपहार भेंट। ०माला, कण्ठाहार। वैजात्य (वि०) जाति की भिन्नता, वर्ण की भिन्नता। जातिबहिष्कृत, स्वेच्छाचारिता। वैज्ञानिक (वि०) [विज्ञान+ठक्] विचारक, कुशल, चतुर। अनुसंधान कर्ता। वैडूर्यं (नपुं०) एक मणि विशेष। (जयो०वृ० १०।८६) ___ विमान विशेष। (समु० ५/१५) वैणः (पुं०) [वेणु+अण-उकारस्य लोपः] बांस का कार्य करने वाला। वैणव (वि०) बांस से निर्मित। वैणव (नपुं०) बांस का डंडा। वैणवं (नपुं०) बांस का बीज। वैणविकर (वि०) बांसुरी वादक। वैणविन् (वि०) शिव, महादेव। वैणिकः (पुं०) वीणा वादक। वैतंसिकः (पुं०) मांस विक्रेता। वैतण्डिकः (पुं०) वितण्डावादी। छिद्रान्वेषी। वैतनिक (वि०) वेतन पाने वाला। वैतनिकः (पुं०) श्रमिक, मजदूर। वैतरणिः (स्त्री०) [वितरेण दानेन लंध्यते वितरण+अण+ङीष] नरक नदी। वैतस् (वि०) वेंत से सम्बंधित। • घुटने टेकने वाला। वैताढ्यः (पुं०) वैताढ्य पर्वत। (वीरो० २।८) वैतान (वि०) [वितान+अण] यज्ञ सम्बंधी, पवित्र। वैतानं (नपुं०) यज्ञकार्य। आहुति। वैताली (स्त्री०) वैताली छन्द जिसके प्रथम एवं तृतीय चरण में चौदह मात्रा, द्वितीय, चतुर्थ में सोलह मात्राएं हो, पदान्त में रगण, लघु और गुरु का प्रयोग हो। वैदः (नपुं०) [वेद+अण] बुद्धिमान व्यक्ति। वैदग्ध (वि०) विदग्धता, क्षीणता। बुद्धिमत्ता, कौशल, चतुराई। (जयो० ११/४०) निपुणता, स्फूर्ति, दक्षण, कुशलता। वैदग्ध्य देखो ऊपर। वैदर्भः (पुं०) विदर्भ का राजा। * रचना शैली, दमयन्ती, ० रुक्मणी। वैदर्भी (स्त्री०) एक काव्य रचना की शैली, वैदर्भी रीति। वैदल (वि०) [विदलस्य विकारः, विदल+अण] बेंत निर्मित, टहनियों से निर्मित। वैदलः (पुं०) एक रोटी विशेष। वैदली (स्त्री०) डलिया, टोकरी, बांस से बनी हुई टोकरी। वैदिक (वि०) [वेदं वेत्त्यधीते वा ठञ् वेदेषु विहितः वेद+ठक्] वेद सम्बन्धी, ज्ञान सम्बंधी। ०वेदविहित, पवित्र। आर्ष। (जयो० २/४) वैदिकः (वि०) आर्य, वेद ज्ञाता ब्राह्मण। वैदिक (वि०) अनुभव करने वाला। वैदिकजनः (पुं०) वेद ज्ञान के ज्ञाता लोग। वैदिक मान्यता वाले लोग। (वीरो० २२/१३) वैदिकधर्मः (पुं०) वेद वेत्ताओं का धर्म। (वीरो० १५/५७) वैदिकनियमः (पुं०) आषरीति। (जयो०वृ० २/४) वैदिकसम्प्रदाय (पुं०) वैदिक मान्यता के सम्प्रदाय। (वीरो० २२/१६) वैदिकसम्प्रदाय-मान्य (वि.) वैदिक सम्प्रदाय द्वारा मानी गई स्नान, आचमन आदि विधि। (वीरो० २२/१६) वैदिकसम्प्रदायिन् (वि०) वैदिक मान्यता वाले। अत्युद्धतत्त्वमित वैदिक सम्प्रदायी प्राप्तोऽभवत् कुवलये वलयेऽभ्युपायी। (वीरो० २२/१४) वैदुषी (स्त्री०) [विद्वस्+अण्+ङीप्] ज्ञान, अधिगम, बुद्धिमत्ता। वैदूर्य (वि०) [विदूर+ष्यञ्] विदूर से उत्पन्न। वैदूर्य (नपुं०) वैदूर्यमणि, नीलम। वैदेशिक (वि०) दूसरे देश से सम्बन्ध रखने वाला, विदेशी, - परदेशी। वैदेशिकः (पुं०) [विदेश+ठञ्] विदेशी व्यक्ति, परदेशी जन। वैदेश्य (वि०) [विदेश+ष्यञ्] विदेशीपन। वैदेहः (पुं०) [विदेह+अण] विदेह देश का राजा। ____०व्यापारी, वैश्या वैदेहकः (पुं०) व्यापारी। वैदेहिकः (पुं०) सौदागर। वैद्य (वि०) [वेद्+यत्] वेद सम्बन्धी, ज्ञान जन्य, आध्यात्मिक। आयुर्वेद सम्बन्धी, आयुर्वेद विषयक। वैद्यः (पुं०) [विद्या अस्ति, अस्य-विद्या+अण] प्राणाचार्य For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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