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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वयोनिः १००६ विषदः १४८) विश्वयोनिः (पुं०) ब्रह्मा। विश्वासः (पुं०) [वि+श्वस्+घञ्] * निष्ठा, श्रद्धा, आस्था। विश्वराज् (पुं०) विश्वप्रभु। * प्रत्यय, विश्रम्भ। (जयो०२/१५१) विश्वरोचनः (पुं०) विश्वलोचनकोष। (जयो०वृ० १/१७) * भेद, रहस्य, गुप्त समाचार। विश्ववस्तविद् (वि०) सकल पदार्थों का ज्ञायक। (सम्य० * धारणा, निश्चय, अस्था। 'विश्वासमसाद्य जिनोक्तवाचि वालेन तत्त्वार्थ मियादसाचि। (सम्य० ७२) विश्ववित्त (वि०) विश्वप्रसिद्ध। (जयो० ६/१०८) विश्वासगत (वि०) आस्थागत, श्रद्धा को प्राप्त हुआ। विश्वस्मिल्लोके वित्तं प्रसिद्धम्। (जयो०वृ०६/१०८) विश्वासघातः (पुं०) धोखा देना, द्रोह रखना। विश्वविद् (वि०) जगत् ज्ञाता, सर्वज्ञ। (सम्य० ५८) विश्वासघातिन् (वि०) द्रोही, धोखे देने वाला। विश्वविदेकधामः (पुं०) विश्वविद का एकमात्र स्थान। विश्वासजन्य (वि०) आस्थायोग्य। (सम्य० १८) विश्वासपात्रं (नपुं०) विश्वसनीय स्थान। विश्वविधान (नपुं०) जगत् का विधान। (सम्य० १५२) । विश्वासभंगः (पुं०) विश्वासघात। विश्वविपदः (पुं०) प्रजा की विपत्ति। (जयो० २/११३) विश्वासभूमि (स्त्री०) आस्था स्थल। विश्वविश्वसन (वि०) सम्पूर्ण विश्वास योग्य। (जयो० २/५१) विश्वास योग्य (पुं०) आस्था योग्य, श्रद्धा का आधार। विश्वविश्वासकारिन् (वि०) जगत् में विश्वास करने योग्य। (दयो०६०) (दयो० ७१) विश्वासवाज्जनगणः (पुं०) विश्वास युक्त जनसमूह। (वीरो० विश्ववेद (वि०) विश्वज्ञाता। (दयो० २९) २२/१२) विश्ववैरिन (पुं०) प्राणिमात्र का शत्र। 'विश्वस्य प्राणिवर्गस्य । विश्वासशील (वि०) निष्ठावान्। वैरिणः शत्रून्' (जयो० २/५४) विश्वासस्थानं (नपुं०) विश्वसनीय स्थल। विश्वशिरोमणि (स्त्री०) जगत् तिलक। (जयो०७० १४/२९) विश्वोत्तभः (पुं०) लोक में उत्तम। (वीरो० ९/२५) विश्वसनीय (सं०क०) [वि+श्वस+अनीयर] विश्वास किये विश्वोपकी (वि०) जगत् निर्माता। (मुनि०८) जाने योग्य। विष् (सक०) घेरना, आवृत्त करना। विश्वसम्माननीय (वि०) भुवनमानिनी। (जयोवृ० २२/७८) * फैलाना, विस्तार करना। विश्वसात् (वि०) विश्वहित की पवित्र भावना वाला। (जयो० * वियुक्त करना, पृथक् करना। २/९१) विश्वस्य सम्पूर्णसमाजस्य हितं स्यादिति विश्वसाद् * उड़ेलना। विशदा भावना निर्दोष भावना तस्यां परः (जयो०वृ० २/९१) विष् (स्त्री०) [विष+क्विप] मल, विष्ठा। विश्वसित् (वि०) विश्वास करने योग्य। (जयो० २/१४२) * फैलाना, विस्तार करना। विश्वसेनः (पुं०) त्रिलोकीनाथ विश्वंभर। (जयो०१०/९५) | विषं (नपुं०) जहर, हलाहल। विषस्यागदं प्रतीकारो विषमेव विश्वस्रष्टुः (वि०) विश्वनिर्माता। (जयो०८/३७) भवतीति। (जयो० १४/३९) * जल, (जयो० १४/७९) विश्वस्त (भू०क०कृ०) [विश्वस्+क्त] विश्वास करने योग्य, (वीरो० २/२४) * लोबान, * रस गन्ध। विश्रब्ध, निडर, साहसी। विषकुम्भः (पुं०) जहर से परिपूर्ण कलश। विश्वहितः (पुं०) जगत् कल्याण। (सुद० ११८) विषकृमिः (स्त्री०) जहर का कीड़ा। विश्वात्मता (वि०) सर्वजनहितकारिता। (जयो० २७/२२) । विषच्छल (वि०) कमलनालच्छलयुक्त। (जयो० १३/१०२) विश्र्वाधायस् (पुं०) [विश्वं दधाति पालयति-विश्व+ विषज्वरः (पुं०) भैंसा। धा+णिच्+असुन्] देवता, अमर। विषज्वहरणं (नपुं०) विष के ज्वर का निवारण। (जयो०७० विश्वानरः (पुं०) सूर्य। १९/७६) विश्वामित्रः (पुं०) एक ऋषि। विषण्ण (भू०क०कृ०) दुःखी, हताश, व्याकुल। विश्वावसु (पुं०) एक गन्धर्व विशेष। विषण्णचित्त (नपुं०) खिन्नचित्त, अनमन। (जयो०वृ० २/१४९) विश्वाश्रयिन (वि०) लोक के आधार भूत। (जयो० १८/५२) विषदः (पुं०) * मेघ, बादल, * तूतिया। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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