SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्व १००५ विश्वम्भरः विश्व (वि०) [विश्व] * सम्पूर्ण, समग्र, * समस्त, पूर्ण, विश्वधारिन् (पुं०) शिव, आदीश्वर। सारा। विश्वनाथः (पुं०) आदीश्वर, ऋषभदेव। * प्रत्येक, हरेक। * शिव। विश्वं (नपुं०) लोक, संसार, जगत्। विश्वनन्दी (पुं०) राजगृह नगर के विश्वभूति ब्राह्मण एवं जैनी * लोकसमूह (जयो० ३/५४) नामक ब्राह्मणी का पुत्र-भूत्वा परिव्राट् स गतो महेन्द्रस्वर्ग *षद्रव्य समूह-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश ततो राजगृहेऽपकेन्द्रः' जैन्या भवामि स्म च विश्वभूतेस्तुक' और काल का समूह विश्व है-'एवं तु षड्द्रव्यमयीय- विश्वनन्दी जगतीत्यपूते।। (वीरो० ११/११) . मिष्टिर्यतः समुत्था स्वयमेव सृष्टिः' (वीरो० १९/३८) विश्वपथप्रदर्शकः (पुं०) दिनेश, सूर्य। 'विश्वस्स संसारस्य * लोक (विश्वं सुदर्शनमयं विभूव (सुद०८६) पथप्रदर्शको मार्गनिर्देशक एष दिनेश, (जयो०१० ४/६२) विश्वंकरः (पुं०) अक्षि, आंख। विश्वपा (पुं०) सूर्य। विश्वकद् (वि०) दुष्ट, नीच, अधम। * चन्द्र। विश्वकर्मन् (पुं०) सूर्य। * अग्नि । विश्वकृत् (वि०) सब प्राणियों का सृष्टा। विश्वपालनपर (वि०) विश्व के पालन में तत्पर। विश्वस्य विश्वकृत् (पुं०) ब्रह्मा, शिव, * आदीश्वर। पालने सम्भालने परस्तत्परो भवादृशो नरो यतः (जयो०१० विश्वकेतु (पुं०) अनिरुद्ध। ७/५८) विश्वगंधः (पुं०) प्याज, लोबान। विश्वपावनी (स्त्री०) तुलसी का पौधा। विश्वगंधा (स्त्री०) पृथ्वी, भू, धरा। विश्वपितुः (पुं०) जगत् पिता, आदीश्वर जिन। 'विश्वपितः विश्वजनं (नपुं०) मानव जाति। जिन एव सविता' (जयो० ८।८९) विश्वजनसौहद (वि०) समस्त लौकिक जनों पर मैत्री। विश्वचासौ विश्वपूजिता (स्त्री०) तुलसी पादप। जन इति विश्वजनस्तस्य सौहदं तस्मात् समस्तलौकिक- विश्वप्रणयप्रदा (स्त्री०) सरस्वती। * वाग्देवी। जनमैत्री भावादेव संभवति' (जयो०वृ० २/२१) विश्वस्य जगन्मात्रस्य यः खलु प्रणयः प्रेमभावस्तं प्रददातीति विश्वजनीन् (वि०) प्राणीमात्र के लिए उपयोगी। सरस्वती (जयो० १९/३४) विश्वजन्य (वि०) समस्त प्राणिायों के लिए उपयोगी। विश्वप्रबन्धक (वि०) विश्वनियामक। (वीरो० १९/४३) विश्वजयिन (वि०) विश्व को जीतने वाले। (मनि०३) विश्वप्सन् (पुं०) देव, अमर, सुर। विश्वजित् (पुं०) जितेन्द्रिय प्रभु। - *सूर्य। विश्वतस् (अव्य०) [विश्व-तसील] सब ओर, सर्वत्र, सब * चन्द्र। जगह, चारों ओर। (सुद० २/३२) विश्वभुज् (पुं०) इन्द्र। विश्वतत्त्वज्ञ (वि०) समस्त जगत् के तत्त्व ज्ञाता, विश्वभर के विश्वभूति (पुं०) राजगृह नगर का एक ही ब्राह्मण। (वीरो० पदार्थ एक साथ, झलकने वाले। 'युगपद्विश्वतत्त्वज्ञ ११/११) प्रध्वस्तान्तर्मलवन्त्वः' (हित०सं० ५५) विश्वभूषणं (नपुं०) जगद्विभूषण। (जयो० १८/७६) विश्वतोमदा (वि०) सबको हर्ष देने वाली मुद्रा। विश्वतःसर्वेषा विश्वभेषजं (नपुं०) सोंठ, सुंठि, सूखा अदरक। मुदं हर्ष राति-ददात्येवंभूता। (जयो० २/११४) विश्वमात्मसात् (वि०) विश्व को अपने समान मानता हुआ। विश्वतोरोचनः (पुं०) श्रीधराचार्य विरचित विश्वलोचन कोष (सुद० ४/६) (जयो० १/१७) विश्वमात (वि०) विश्व की माता। (सुद०३/२) विश्वदेवः (पुं०) जगत् पिता। विश्वमूर्ति (वि०) सर्वव्यापी। विश्वदृश्वा (वि०) समस्त जगत को देखने वाले। (वीरो० | विश्वमोहनः (वि.) संसार को वश में करने वाला मोहन। २०/२१) विश्वस्य संसारस्य वशीकरणमस्तीति। (जयो० २/६०) विश्वधारिणी (स्त्री०) भूमि, पृथ्वी। . विश्वम्भरः (पुं०) जगत्पाल। (वीरो० ५/२३) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy