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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभक्त ९८७ विभावना विभक्त (भू०क०कृ०) [वि+भज्+क्त] * विभाजित की गई, | विभा (स्त्री०) [वि+भा+क्विप्] प्रतीत होना। (सुद० १०७) बांटी गई। * कान्ति, प्रभा, आभा, प्रकाश। (जयो०वृ० १/१२) * विभिन्न, विविध। * किरण। * अप्रभा। (जयो०वृ० १/१२) ___* नियमित, सममित। विभाकरः (पुं०) * सूर्य, दिनकर। (जयो० ५/१७) विभक्तवान् (वि०) विभाजित करने वाला। * मदार पादप, * चन्द्र। विभक्तिः (स्त्री०) [वि+भज+क्तिन] * विभाजन, विभाग, विभाकरमूर्तिः (स्त्री०) सूर्य बिम्ब। (जयो० ५/७१) बांटना। विभागः (पुं०) * विभाजन, बांटना। * प्रभाग, पार्थक्य। * अलग-अलग करना, * अंश, अनुभाग, हिस्सा। * कारक चिह्न। * भेद-विधीनां नवधा विभागः (सम्य० १३२) विभक्षित (वि०) भुंजित। (समु० ४/९) * खाया हुआ। * भिन्न-भिन्न-चैगुप्यं जडरूपतां च दधतोः कृत्वा विभागम्' विभंगः (पुं०) [वि+भंज्+घञ्] * टूटना, भग्न होना, (सम्य० १४४) खंडित होना। विभागकल्पना (स्त्री०) अंश नियत करना। * अवरोध, रुकावट, विराम। विभागगामिन् (वि०) अंश देने वाला। * झुर्रा, शिकन। विभागधर्मः (पुं०) धर्म विभाजन। * फूट पड़ना, प्रकटीकरण। विभागपत्रिका (स्त्री०) पत्र का एक अंश। * सिकोड़ना। विभागभाज् (पुं०) बंटी हुई सम्पत्ति का भागीदार। विभज (अक०) बांटना, विभक्त करना। (सुद० ३०) विभाजनं (नपुं०) [वि+भज्+णिच् ल्युट्] वितरण करना, विभङ्गज्ञानं (नपुं०) विपरीत अवधिज्ञान, मिथ्यात्व युक्त बांटना। अवधिज्ञान। 'विपरीतो भंगः परिच्छित्तिप्रकारो यस्य तद्विभङ्गम, विभाज्य (वि.) [वि+भज+ण्यत] विभक्त किये जाने योग्य. तच्च तत्। विभजनीय। विभङ्गदेशिनी (वि०) विपरीत ज्ञान की देशना वाली। विभातं (नपुं०) [वि+भा+क्त] * प्रभात, प्रात:काल होना। * नाना प्रकार के ज्ञान को प्रदर्शित करने वाली। (जयो० (जयो० ८४८९, जयो० ५/२२) पौ फटना, अरुणोदय। विभग्न (वि०) त्रुट्यत्व। (जयो० ११/३४) विभातनामषडरचक्रबन्धः (पुं०) एक छन्द की रचना। (जयो० विभवकृत् (वि०) सम्पत्ति की। (जयो० १०/९७) ज्ञानं च १८/१०३) विभङ्गज्ञानम्। (जैन०ल० १०११) विभान्ती (वि०) शोभमान। (जयो० १२/४३) विभज्य (सं०कृ०) विभक्तकर, विभाजितकर। (सम्य० २४) विभामूर्तिः (स्त्री०) प्रकाश पुंज। (जयो० ८८८९) विभवः (पुं०) [वि+भू+अच्] धन, सम्पत्ति, विभावः (पुं०) [वि+भू+घञ्] * विपरीत भाव, विकारी भाव। * ऐश्वर्यानन्द। (जयो० १२/१३७) * अशाश्वतभाव (जयो० १३/५५) * वैभव, * शक्ति, पराक्रम, बड़प्पन। * मिथ्याभाव, कुभाव। * प्रभाव (जयो०५/२४) * क्रान्तिमत्व। (जयो०११/१५) * आत्म-स्वरूप के प्रतिकूल भाव। * उन्नत अवस्था, पद प्रतिष्ठा। * समूह (जयोवृ० * प्रलय (जयो० १८/५२) ३/१३) विभागगुणं (नपुं०) विपरीत गुण, विकारी गुण। * कटाक्ष (जयो० १/१२०) आनन्द (जयो० ३/४५) विभावनं (नपुं०) [वि+भू+णिच्+ल्युट] * विवेक, निर्णय। * मुक्ति निर्वाण। * विचार, चिन्तन-मनन। विभवमयसम्पत्तिशाली (वि०) सम्पत्ति से पूर्ण। (जयो०२२/४) __ * गवेषण, परीक्षण। विभवाश्रयः (पुं०) काव्य रचना में चतुर। (जयो० ) * प्रत्यय, कल्पना। विभा (अक०) सुशोभित होना, सेवन करना। (जयो० ३/१) | विभावना (स्त्री०) सम्बुद्धि विशेष भावना। (जयो० १/१४) विभाति (सम्य०१३२) एक अलंकार विशेष, जिसमें बिना कारण के कार्य का ३/१०) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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