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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभावान्वयि ९८८ विभूषणं वर्णन किया जाता है। विना कारणसद्भावं यत्र कार्यस्य दर्शनम्। नैसर्गिक गुणोत्कर्ष-भावनात्सा विभावना।। (वाग्भ० ४/९६) विभावान्वयि (वि०) विभाव के साथ नियम से अन्वय वाला। (सम्य० १३०) विभावसूचिन् (वि०) विभावपरिणाम को सूचित करने वाला। (वीरो० १०/३८) विभावपर्यायः (पुं०) चतुर्विध अलग-अलग पर्याय, मनुष्य, देव, नारक और तिर्यंच ये विभावपर्याय हैं। विभावरी (स्त्री०) [वि+भा+वनिप+ङीप] * रात्रि, रजनी, रात। (जयो० ३/५७) * हल्दी । * कुटनी। * वेश्या । * मुखरा स्त्री, बातूनी स्त्री। विभावरीक़त् (वि०) विकृतभावस्य विभावस्य रीतिश्चेष्टा प्रलयमेति विनश्यति। (जयो० १८/५२) ०राचिकृत। विभावित (भू०क०कृ०) [वि+भू+णिच्+क्त] * निर्णीत, विवेचित, वर्णित, कथित। * संकेत्ति, निर्देशित, प्रकटीकृत। * निश्चित किया गया। विभाविह (वि०) शत्रु नष्ट करने वाला। (जयो०३० २४/४) विभाव्यते -ग्रहण करता है। (जयो० ५/७६) । विभाषा (स्त्री०) [वि+भाष्+अ+टाप्] * सूत्र सूचित अर्थ की व्याख्या। * विवरण, विवेचन, विशेष कथन। * नियम की विकल्पता, ईप्सित वस्तु का विकल्प। विभासा (स्त्री०) [वि+भास्+अ+टाप] * प्रभा, कान्ति, आभा, प्रकाश। * चमक, दीप्ति। विभासुर (वि०) कान्तियुक्त। (जयो० ) विभिद्य (वि०) भिन्न। (सुद० १३३) विभिन्न (भू०क०कृ०) [वि+भिद्+क्त] भेद किया हुआ, विभाजित किया हुआ, विभागयुक्त। (सुद० २/३३) * विविध, नानाविध, बहुविध। * मिश्रित, मिलाया हुआ। विभिन्नजः (पुं०) महादेव, शिव। विभिन्नविपणित्व (वि०) जुदी जदी दुकान वाले। (वीरो० २२/२७) विभिन्नशैवालदलम् (नपुं०) नाना प्रकार के शैवाल दल। (जयो० १४/४९) विभीतः/विभीतकः (पुं०) बहेडा, हरीतकी। विभीषक (वि.) [विशेषेण भीषयते वि+भी+णिच्+ण्वुल] संत्रास युक्त, भयप्रदायी। विभीषण (वि०) भयदायक। (जयो० ८/७) विभीषिका (स्त्री०) [वि+भी+णिच्+ण्वुल+टाप्] डर, भय, डरावना, भयावह स्थिति, कठिनपरिस्थिति। विभु (वि०) [वि+भू-डु] * शक्तिसम्पन्न, बलशाली। * प्रभावशाली, स्वामिन्। (सुद० २/१३) * प्रमुख, सर्वोपरि, प्रधान। (सर्वज्ञ० सुद० १२९) * योग्य, समर्थ। * सर्वव्यापी, सर्वगत, व्यापक। विभु (पुं०) प्रभु, स्वामी, नृप। (सम्य० ११०) त्वद्विभुर्विभुषु (जयो० ४/४०) * आकाश। * व्यापक, विशाल। * काल। अवकाश। * आत्मा। * सेवक। * ब्रह्मा। * राजा। (जयो० ४/३२) विभुग्न (वि०) [वि+भुज्+क्त] कुटिल, तिरछा, वक्र। * झुका हुआ। * कुण्ठभाव। (जयो० १७/५२) विभूतिः (स्त्री०) [वि+भू+क्त] * समृद्धि, वैभव, सम्पत्ति। * घर। * कल्याण, हित। * भवाभावात्मिकश्री (जयो० २३/७१) * प्रतिष्ठा, उच्चपद। * महिमायुक्त। * भस्म। (सुद० ११२) विभूतिभागः (पुं०) विराग भाव। (सुद० १११) विभूतिमत्त्व (वि०) वैभव युक्त। (जयो०वृ० १/३०) (वीरो० ३/१३) वैभववान् (जयो० १८/१६) ___ * भस्म रूप। (जयो० १६/१५) वैभवसंयुक्त। (जयो० ३/२९) भस्माधिकारी। (जयो० ६/२९) विभूतिमान् (वि०) ऐश्वर्य युक्त। * धन-सम्पत्ति वाला। विभूषणं (नपुं०) [वि+भूष+ल्युट्] * अलंकरण, सजावट। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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