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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपुलमतिज्ञानं ९८५ विप्रलापः * मन पर्यय ज्ञान का भेद-जो बात किसी के मन में अभी * असमहति, आपत्ति। हो और पहले आ चुकी हो या आगे आने वाली हो, उस * परिचय, पहचान। बात के बारे में भी जो जान सकता है वह विपुल मति विप्रतिपन्न (भू०क०कृ०) [वि+प्रति+पद्+क्त] * विरोधी, है। (त०सू०प० २२) परस्पर विरुद्ध। विपुलमतिज्ञानं (नपुं०) मनः पर्यय ज्ञान का एक नाम-'सर्वत्र * व्याकुल, शोकाग्रस्त। णमो विउलमदीणं मनः सम्भवेत्तरामरीणम्। * परस्पर सम्बद्ध। येन श्रुतसंग्रहे प्रवीणं, पापाचारादपि, प्रहीणम्।। विप्रतिषेधः (पुं०) [वि+प्रति+सिध+घब] * निषेध, नियम (जयो० १९/६) विरुद्ध। (मुनि० ३) विपुलरसः (पुं०) गन्ना, इक्षु, ईख। * प्रतिरोध, प्रतिवर्तन। विपुलशक्ति (स्त्री०) अपूर्व बल। विप्रतिसारः (पुं०) [वि+प्रति+सृ+घञ्] * क्रोध, कोप, गुस्सा। विपुलसिद्धि (स्त्री०) प्रशस्त सिद्धि। * पछतावा। विपुला (पुं०) पृथ्वी। * दुष्टता, शत्रुता। विपूत (वि०) [विशेषेण पूता पवित्रा विपूता] निर्मल, पवित्र (जयो० ८/९०) विप्रदुष्ट (भू०क०कृ०) [वि+प्र+दुष्+क्त] * दूषित, विकृत, विपूयः (पुं०) [वि+पू+क्यप्] एक घास विशेष, मंजु घास। मलिन। विप्रः (पुं०) [वप्रन्] ब्राह्मण, द्विजन्मन् (जयोवृ० २/१११) * भ्रष्ट, पतित, गिरा हुआ। - विप्र:कृषौ प्रवृत्तोऽपि, विप्र एवाभिधीयते। (हित०सं० १३) | विप्रनष्ट (भू०क०कृ०) [वि+प्र+नश्+क्त] * लुप्त, खोया हुआ। विप्रकर्षः (पुं०) [वि+प्र+कृष्+घञ्] * दूरी, फासला, अधिकता। ___ * व्यर्थ, निरर्थक। विप्रकारः (पुं०) [वि+प्र+कृ+घञ्] * अपमान, कटु व्यवहार, विप्रबुद्धिः (स्त्री०) ब्राह्मण बुद्धि। (वीरो० १४/४७) दुर्वचन। विप्रमुक्त (भू०क०कृ०) [वि+प्र+मुच्+क्त] * छोड़ा हुआ * क्षति, अपराध। परित्यक्त। * रहित शून्य, * अभाव, विमुक्त। *दुष्टता, विरोधा * निशाना बनाया हुआ। * प्रतिक्रिया. प्रतिहिंसा। विप्रयुक्त (भू०क०कृ०) [वि+प्र+युज्+क्त] * वियुक्त, विप्रकीर्ण (वि०) [वि+प्रकृ+क्त] * फैला हुआ, बिखरा हुआ। विच्छिन्न, पृथक् किया हुआ। * प्रसारित, विस्तृत, विस्तीर्ण। ___ * मुक्त किया हुआ, परित्यक्त। * व्यापक। * वञ्चित, विरहित। विप्रकृत (वि०) [वि+प्रकृ+क्त] * आहत, घायल. आघात। । विप्रयोगः (पुं०) [वि+प्र-युज+घब] * वियोग, विछोह, अलगाव। विप्रकृतिः (स्त्री०) क्षति, आघात। * कलह, असमहति। * अपमान, अपशब्द, कटुव्यवहार। * अनैक्य, पार्थक्य। * प्रतिहिंसा, बदला। विप्रराट् (पुं०) श्रेष्ठ ब्राह्मण। (सुद० ३/३५) विप्रकृष्ट (भू०क०कृ०) [वि+प्र+कृष्+क्त] * हटाया गया, | विप्रलब्ध (भूक०कृ०) [वि+प्र+लभ+क्त] * धोखा दिया खींचा गया। गया, ठगा गया। * विस्तारित, विस्तीर्ण, फैलाया गया। * निराश किया गया, चोट पहुंचाया गया। विप्रतिकारः (पुं०) [वि+प्रति+कृ+घञ्] * विरोध, निवारण, * क्षतिग्रस्त, ध्वस्त रोकना। विप्रलम्भः (पु०) [वि+प्र+लम्भ+घञ्] * छल, चालाकी. धोखा। * प्रतिहिंसा। * कलह, असहमति। विप्रतिपत्तिः (स्त्री०) [वि+प्रति+पद+क्तिन] * पारस्परिक __ * अनैक्य, पार्थक्य, विछोह, वियोग। असंगति, संघर्ष, विरोध। विप्रलापः (पुं०) [वि+प्र+लप्+घञ्] * बकवास, व्यर्थ का For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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