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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपर्ययः विपुलमति विपर्ययः (पुं०) [वि+परि+इ+अच] * विपरीत, प्रतिकूल, व्यतिक्रम। * विलोमता। (जयो० २२/५८) * लोप, हानि, क्षति, विध्वंस। * त्रुटि, उल्लंघन, भूल। * संकट, दुर्भाग्य। * शत्रुता, दुश्मनी। विपर्यस्त (भू०क०कृ०) [वि+परि+अस्+क्त] * परिवर्तित, व्युत्क्रान्त, उलटा। * सीप में चांदी का आभास होना! * विरोधी, प्रतिकूल। विपर्यायः (पुं०) [वि+परि+इ+घञ्] वैपरीत्य, प्रतिकूलता। विपर्यासः (पुं०) [वि+परि+अस्+घञ्] व्यतिक्रम, प्रतिकूलता। ___* विपरीत्ता, परिवर्तन। विपलं (नपुं०) [विभक्तं पलं येन] क्षण, समय का छोटा अंश। विपलायनं (नपुं०) [विशेषणं पलायनम्] पलायन करना, भागना, अन्यत्र जाना। विपल्लव (वि०) भृष्टपत्र। (जयो० १४/२१) 'विकृतानां पदानां ये लवास्ते विपल्लवा' (वीरो० १/२३) विपल्लवित्व (वि०) पत्र सहित्व का विनाश। विगतं विनष्टं पल्लववित्वं पत्रसहितत्त्वं विपदां लवा अंशा विद्यन्ते यस्य स विपल्लवी तस्य भावः। (जयो० १४/४०) विपश्चित् (वि.) [विप्रकृष्ट चिनो ति चेतति चिन्तयति-वि+प्र+चि+क्विप्] * धीमत् (जयो०व० ४/३३) * विद्वान्। (भक्ति० ३१) * विचारशील-सूक्तानुशीलनेनात्र कालो याति विपश्चिताम्' (दयो० १०१) * पण्डितस्याङ्गशरा। (जयो० १९/१०) * बुद्धिमान, धीमान्, ज्ञानी। * हेयोपादेय का जानने वाला। * विचक्षण, प्रतिभाशाली। (जयो० ५/२२) विपाकः (पुं०) [वि+पच्+घञ्] * पकना, पकाना, भोजन पकाना। * पाचनशक्ति, परिपक्वता, परिपाक। * परिणाम, फल, परिणति, कर्मस्थिति। * शुभाशुभ परिणाम। * अवस्थापरिवर्तन-कर्म की अनुभाग शक्ति। * कठिनाई, कष्ट, विपत्ति, संकट। विपाकगत (वि०) परिपक्वता को प्राप्त। विपाकजा (स्त्री०) स्थिति पूर्ण होने पर पकने पर फल देना। विपाकपटुक (वि०) फल काल में सुखद। (जयो० २७/६४) विपाकविचयः (पुं०) कर्मों का अनुभवन। (समु०८/३९) विपाकसूत्र (नपुं०) एक जैन अंगागम। * शुभ-अशुभ विपाक के फल का प्रतिपादक अङ्ग आगम सूत्र। विपाटनं (नपुं०) [वि+पट्+णिच्+ल्युट्] * उखाड़ना, अपहरण। * खण्ड खण्ड करना, फाड़कर खोलना। विभाजन करना। विपाठः (पुं०) लम्बा तीर।। विपाण्डु (वि०) पीला, विवर्ण। विपादिका (स्त्री०) विवांई, पैर फटना। विपाश् (स्त्री०) व्यास नदी। विपिनं (नपुं०) [वेपन्ते जनाः अत्र, वेप्+इनन्] अरण्य (जयो० १८/४८) * कानन। (जयो० १३/५०) वन (जयो० १३/५४) * जंगल। * वाटिका। * लतागृह, * लता मण्डप। * लताकुंज, झुरमुट। विपिनकंदः (पुं०) काननकंद। विपिनधनं (नपुं०) अरण्य सम्पत्ति। * वन सम्पदा। विपिनशोभा (स्त्री०) वन शोभा। (जयो० १८९) विपिनश्री (स्त्री०) अरण्य गरिमा, वन सौंदर्य। विपुल (वि०) [विशेषेण पोलति वि+पुल्क] विस्तृत, विशाल, अधिक, पर्याप्त। * प्रशस्त, आयत। * अतिविशाल, मोटी। (जयो०० ६/७) * अनल्प। (जयो० २/१४९) * अगाध, गहरा। विपुलः (पुं०) विपुलाचल पर्वत, मेरु पर्वत। विपुलकर्म (वि०) गम्भीर परिणाम। विपुलकार्य (वि०) अत्यधिक काम। विपुलकौतुकः (पुं०) पर्यात उत्सुकता। विपुलकौमुदी (स्त्री०) विस्तृत चांदनी, फैली हुई चांदनी। विपुलगामिन् (वि०) सम्माननीय। विपुल गेहं (नपुं०) विशालघर, बड़ा भवन। विपुलछाय (वि०) सघन छाया। विपुलमति (स्त्री०) मनोगत पदार्थ को जानने वाली बुद्धि। * मनीषी, प्रज्ञावान्। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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