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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपंचिका ९८३ विपर्णकः विपंचिका (स्त्री०) [विपंची कन्+टाप] * बीणा। * खेल, क्रीड़ा, मनोरंजन। (जयो० ६/७) विपंची (स्त्री०) वीणा। * खेल, क्रीड़ा। पञ्चभ्यो विहीना विपञ्चतीति। (जयो० ११/४७) विपणः (पुं०) [वि+पण्+घञ्] बिक्री। * लघु व्यापार। विपणनं (नपुं०) [वि+पण ल्युट] * व्यापार। * बिक्री। विपणिः (स्त्री०) [विपण+इन्] * बाजार, हाट, मण्डी। * माल, सामान, बिक्री योग्य वस्तु। * वाणिज्य, व्यापार। (सुद० ९१) विपणिन् (पुं०) [विपण+इनि] व्यापारी, सौदागर, दुकानदार। विपणिस्थानं (नपुं०) वणिकपथ, बाजार। (वीरो० २/१०) विपण्ण (वि०) व्यापार युक्त। विपत्परिहारक (वि.) विपत्ति से बचाने वाला। विपत्परिहारकत्व (वि०) आपत्ति का विनाशक। विपत्प्रतीयः (वि०) निपत्ति नाशक। (दयो० ३) विपत्तिः (स्त्री०) [वि+पद्+क्तिन] क्षणादेव विपत्तिः स्यात्सम्पत्ति अधिगच्छतः (वीरो० १०/२) * आपत्ति, कष्ट, दु:ख, अनर्थ। (सुद० १११) * दुर्भाग्य, संकट। * वेदना, यातना। * विनाश, क्षति, हानि। विपत्तिकर (वि०) गुणहीन। (जयो० १६/७३) विपत्तिकरत्व (वि०) गुणों का अभाव वाला। विपत्तिकारिन् (वि.) आपत्ति करने वाला। (समु०७/२८) (वीरो० १/१९) विपत्र (वि०) पत्र रहित। (सुद० ११८) (जयो० ३/३५) विपथः (पुं०) [विरुद्ध पंथ] कुमार्ग, कुपथ। विपद् (सक०) प्राप्त होना, (सुद० १२८) पाना। विपद्यते (सुद० १२८) विपद (स्त्री० [वि+पद+क्विप] आपद. आपत्ति। (जयो०३/५५) * बाधा, रुकावट। * असुंदर-परिणमन। (जयो० २/४९) * दुःख, कष्ट, व्यधान। (सुद० ८९) * मृत्यु। (सुद० १०५) वि-पदः (पुं०) पक्षी कलरव, वाग्विन्यास। (जयो० १८/३०) विपदकालः (पुं०) संकट का समय। विपदगा (स्त्री०) विरुद्धभाव, 'विरुद्धभावं गच्छतीति विपदगा' (जयो० ९/११) विपदम्बुविधिः (स्त्री०) आपद रूपी-जलनिधि। (जयो० २०/५९) विपदा (स्त्री०) विपत्ति, आपत्ति, संकट, कष्ट। (सुद० १०३) विपदी (स्त्री०) विपत्ति, संकट। (मुनि० १६) । विपदोपहत (वि०) संकट ग्रस्त, कष्ट युक्त। (जयो०१८/३०) विपद्य (वि०) प्राप्त हुआ। (सुद० ११९) * पदहीन, निष्किरण। (जयो० १५/१४) विपन्न (भू०क०कृ०) [विपद्+क्त] * लुप्त, नष्ट। * कष्टग्रस्त, संकट युक्त। * दुःखी, पीड़ित। (सुद० ९०) * क्षीण, कृश। * अयोग्य, अशक्त। विपन्नः (पुं०) सर्प, सांप। * अहि, * विषधर। विपन्नगी (स्त्री०) विपत्ति की स्थली। 'विपदामापदां नगीव स्थलीव' (जयोवृ० ३/५५) वक्ष्यते वीक्षमाणेभ्यः पन्नगीव विपन्नगी। (जयो.० ३/५५) विपन्नसमयः (पुं०) विपत्ति का समय। विपन्निपातः (पुं०) आपत्ति स्थान। (वीरो० १७/१०) (सुद०९०) विपन्निवारक (वि.) विपत्ति निवारक, कष्ट निवारण करने वाला। (जयो०वृ० ३/३५) विपन्निवेशः (पुं०) विपत्तिस्थान। (वीरो० १७/१३) विपरिणमनं (नपुं०) [वि+परि+नम्+ल्युट्] परिवर्तन, बदलना, रूपान्तरण। * असुंदर परिणति। (जयो० २/४९) विपरिणामः (पुं०) [वि+परि+वृत्+ल्युट्] * मुड़ना, लुढ़कना, परावर्तन करना, घूमना। * रूपान्तरण। विपरिवर्तनं (नपुं०) [वि+परि+वृत्+ल्युट्] परावर्तन, चुभना। विपरीत (वि०) [वि+परि+इ+क्त] प्रतिकूल विरोधी, प्रतिवर्ती, औंधा। (जयो० ६/९७) * अशुद्ध, नियमविरुद्ध। * मिथ्या, असत्य। (दयो० ३५) * अरुचिकर, अशुभ। विपरीतकर (वि०) विरुद्ध कार्य करने वाला, विरोधी, विरुद्धगामी। विपरीतकार्यः (पुं०) अशुभकार्य। (वीरो० १९/३७) विपरीतचेतस् (वि०) विरुद्ध बुद्धि वाला, कुमति युक्त। विपर्णकः (पुं०) [विशिष्टानि पर्णानि यस्य] पलाशतरु, ढाक का पेड़। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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