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प्रस्थापनं
७३०
प्रहत
गया।
प्रस्थापनं (नपुं०) [प्रस्था+णिच्+ल्युट्] ०भेजना, विसर्जित खोलना, प्रकट करना। करना।
मुकुलित होना। प्रेषित करना।
छेदना, पीटना। ०प्रमाणित करना, प्रदर्शन करना।
०धान्य साफ करना। उपयोग करना, काम में लगाना।
प्रससिन् (वि०) [प्र+संस्+णिनि] गर्भपात होना, गर्भ गिरना। प्रस्थापित (भू०क०कृ०) [प्र+स्था+णिच्+क्त] ०प्रेषित, भेजा प्रस्रवः (पुं०) [प्र+मु+अप्] ०बहना, टपकना, निकलना, गिरना।
०बहाव, धारा, प्रवाह। स्थापित, सिद्ध।
रिसना, झरना पतित होना। प्रस्थित (भू०क०कृ०) [प्र+स्था+क्त] ०प्रस्थान किया, प्रयाण | प्रस्रवणं (नपुं०) [प्र+स्नु+कान्+ल्युट्] गोमूत्र, मूत्रोत्सर्ग। (जयो०
किया। (जयो० ३/३४) प्रस्थित सहसोत्थाय २४८७) श्रीमतामग्रगामिना। (जयो० ३/९८) प्रस्थिते भवन्तमुद्दिश्य नाली, टोंटी। गन्तुमुद्यते। (जयो० ३/८९)
०टपकना, झरना, बहना। विसर्जित किया, यात्रा पर गया हुआ।
जलप्रपात, निर्झर, झरना, स्रोत। प्रस्थितिः (स्त्री०) [प्र+स्था+क्तिन्] चले जाना, विदा होना, प्रवाहिका। कूच करना।
स्वेद, पसीना। प्रयाण करना।
प्रस्रवणः (पुं०) एक पर्वत। प्रस्नः (पुं०) [प्र+स्ना+क] स्नान पात्र।
प्रस्रावः (पुं०) [प्र+उ+घञ्] ०बहाव, प्रवाह। ०मूत्र। प्रस्नवः (पुं०) [प्र+स्नु+अप्] उमड़ कर बहना, नि:स्रवण। प्रसृत (भू०क०कृ०) [प्र+सु+क्त] ०झरा हुआ, गिरा हुआ। ०धार, प्रवाह।
उमड़ा हुआ, रिसा हुआ। प्रस्तुत (भू०क०कृ०) [प्र+स्नु+क्त] झरता हुआ, बहता हुआ, प्रस्वनः (पुं०) [प्र+स्वन्+अप्] उच्च ध्वनि, ऊंचा स्वर। निकलता हुआ।
प्रस्वापः (पुं०) [प्र+स्वप्+घञ्] निद्रा, स्वप्न। प्रस्नुस्तनी (स्त्री०) स्तन से दूध बहाने वाली स्त्री।
प्रस्विन्न (भू०क०कृ०) [प्र+स्विद्+क्त] ०पसीना आया हुआ, प्रस्नुषा (स्त्री०) पौत्रवधू।
पसीने से तर। प्रस्पन्दनं (नपुं०) [प्र+स्पन्द्+ल्युट्] धड़कन, थरथराहट, प्रस्वेदः (पुं०) [प्र+स्विद्+घञ्] पसीने की तीव्रता, पसीने में कंपकंपी।
तर। प्रस्पष्ट (वि०) स्पष्ट, प्रकटीभूत। (जयो०८/६८) (सुद०२/१६) | प्रस्वेदजलं (नपुं०) श्रमवारी, श्रमकण। (जयो० १३/७७) अत्यंत स्पष्ट। (समु० २/३०)
सिप्रशिव। (जयो० १३/७९) प्रस्फुट (वि०) [प्र+स्फुट ल] विकसित, प्रस्तारित, फैला पसीना। (जयो०वृ० १५/५०) हुआ।
प्रस्वेदनिस्विन्न (वि०) श्रमजलार्द्र, पसीने से व्याप्त। 'प्रस्वेदेव प्रकाशित, भासित, स्पष्ट।
श्रमजलेन निस्विन्नयाऽर्द्रता' (जयो०वृ० १३/८४) ०सरल, साफ, स्वच्छ।
प्रस्वेदपूरः (पुं०) सिप्रसार, श्रमपूरिपूर्ण, श्रमजल, स्वेदजल। प्रस्फुर (अक०) फैलना, कांपना, थरथराना।
(जयो० १२/६२) पसीने से व्याप्त। विकसित होना। (प्रस्फुरन्ति-विकसन्ति) (जयो० ४/५४) | प्रस्वेदित (भू०क०कृ०) [प्र+स्विद्+णिच्+क्त] पसीने से परिपूर्ण, प्रस्फुरित (भू०क०कृ०) [प्र+स्फुर/क्त] विकसित, फैला हुआ। प्रस्वेदपूर श्रमजल से व्याप्त। ०कंपकपाता हुआ, थरथराता हुआ।
०स्वेदाच्छन्ना ठिठुरता हुआ।
प्रहणनं (नपुं०) [प्र.ह्न ल्युट्] वध, हत्या। प्रस्फोटनं (नपुं०) [प्र+स्पुट्+ ल्युट्] खिलना, विकसित होना, | प्रहत (वि०) [प्र+ह्न+क्त] घायल, वध किया हुआ, मारा हुआ। फूलना।
०आहत।
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