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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्थापनं ७३० प्रहत गया। प्रस्थापनं (नपुं०) [प्रस्था+णिच्+ल्युट्] ०भेजना, विसर्जित खोलना, प्रकट करना। करना। मुकुलित होना। प्रेषित करना। छेदना, पीटना। ०प्रमाणित करना, प्रदर्शन करना। ०धान्य साफ करना। उपयोग करना, काम में लगाना। प्रससिन् (वि०) [प्र+संस्+णिनि] गर्भपात होना, गर्भ गिरना। प्रस्थापित (भू०क०कृ०) [प्र+स्था+णिच्+क्त] ०प्रेषित, भेजा प्रस्रवः (पुं०) [प्र+मु+अप्] ०बहना, टपकना, निकलना, गिरना। ०बहाव, धारा, प्रवाह। स्थापित, सिद्ध। रिसना, झरना पतित होना। प्रस्थित (भू०क०कृ०) [प्र+स्था+क्त] ०प्रस्थान किया, प्रयाण | प्रस्रवणं (नपुं०) [प्र+स्नु+कान्+ल्युट्] गोमूत्र, मूत्रोत्सर्ग। (जयो० किया। (जयो० ३/३४) प्रस्थित सहसोत्थाय २४८७) श्रीमतामग्रगामिना। (जयो० ३/९८) प्रस्थिते भवन्तमुद्दिश्य नाली, टोंटी। गन्तुमुद्यते। (जयो० ३/८९) ०टपकना, झरना, बहना। विसर्जित किया, यात्रा पर गया हुआ। जलप्रपात, निर्झर, झरना, स्रोत। प्रस्थितिः (स्त्री०) [प्र+स्था+क्तिन्] चले जाना, विदा होना, प्रवाहिका। कूच करना। स्वेद, पसीना। प्रयाण करना। प्रस्रवणः (पुं०) एक पर्वत। प्रस्नः (पुं०) [प्र+स्ना+क] स्नान पात्र। प्रस्रावः (पुं०) [प्र+उ+घञ्] ०बहाव, प्रवाह। ०मूत्र। प्रस्नवः (पुं०) [प्र+स्नु+अप्] उमड़ कर बहना, नि:स्रवण। प्रसृत (भू०क०कृ०) [प्र+सु+क्त] ०झरा हुआ, गिरा हुआ। ०धार, प्रवाह। उमड़ा हुआ, रिसा हुआ। प्रस्तुत (भू०क०कृ०) [प्र+स्नु+क्त] झरता हुआ, बहता हुआ, प्रस्वनः (पुं०) [प्र+स्वन्+अप्] उच्च ध्वनि, ऊंचा स्वर। निकलता हुआ। प्रस्वापः (पुं०) [प्र+स्वप्+घञ्] निद्रा, स्वप्न। प्रस्नुस्तनी (स्त्री०) स्तन से दूध बहाने वाली स्त्री। प्रस्विन्न (भू०क०कृ०) [प्र+स्विद्+क्त] ०पसीना आया हुआ, प्रस्नुषा (स्त्री०) पौत्रवधू। पसीने से तर। प्रस्पन्दनं (नपुं०) [प्र+स्पन्द्+ल्युट्] धड़कन, थरथराहट, प्रस्वेदः (पुं०) [प्र+स्विद्+घञ्] पसीने की तीव्रता, पसीने में कंपकंपी। तर। प्रस्पष्ट (वि०) स्पष्ट, प्रकटीभूत। (जयो०८/६८) (सुद०२/१६) | प्रस्वेदजलं (नपुं०) श्रमवारी, श्रमकण। (जयो० १३/७७) अत्यंत स्पष्ट। (समु० २/३०) सिप्रशिव। (जयो० १३/७९) प्रस्फुट (वि०) [प्र+स्फुट ल] विकसित, प्रस्तारित, फैला पसीना। (जयो०वृ० १५/५०) हुआ। प्रस्वेदनिस्विन्न (वि०) श्रमजलार्द्र, पसीने से व्याप्त। 'प्रस्वेदेव प्रकाशित, भासित, स्पष्ट। श्रमजलेन निस्विन्नयाऽर्द्रता' (जयो०वृ० १३/८४) ०सरल, साफ, स्वच्छ। प्रस्वेदपूरः (पुं०) सिप्रसार, श्रमपूरिपूर्ण, श्रमजल, स्वेदजल। प्रस्फुर (अक०) फैलना, कांपना, थरथराना। (जयो० १२/६२) पसीने से व्याप्त। विकसित होना। (प्रस्फुरन्ति-विकसन्ति) (जयो० ४/५४) | प्रस्वेदित (भू०क०कृ०) [प्र+स्विद्+णिच्+क्त] पसीने से परिपूर्ण, प्रस्फुरित (भू०क०कृ०) [प्र+स्फुर/क्त] विकसित, फैला हुआ। प्रस्वेदपूर श्रमजल से व्याप्त। ०कंपकपाता हुआ, थरथराता हुआ। ०स्वेदाच्छन्ना ठिठुरता हुआ। प्रहणनं (नपुं०) [प्र.ह्न ल्युट्] वध, हत्या। प्रस्फोटनं (नपुं०) [प्र+स्पुट्+ ल्युट्] खिलना, विकसित होना, | प्रहत (वि०) [प्र+ह्न+क्त] घायल, वध किया हुआ, मारा हुआ। फूलना। ०आहत। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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