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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसेदिका ७२९ प्रस्थानकालोचित प्रसेदिका (स्त्री०) वाटिका, छोटा उद्यान। ०आमुख, प्रस्तावना, भूमिका। प्रसेनजितः (पुं०) महावीर शासन काल में दीक्षा को प्राप्त उल्लेख, संकेत, संदर्भ। (जयोवृ० १/६९) होने वाला राजा प्रसेनजित, जिसकी रानी मल्लिकादेवी थी ०अवसर, समय, ऋतु। प्रसेनिकाकुशलः (पुं०) अनुरंजित करने वाली विद्या। विषय, शीर्षक। १. अंगुष्ठप्रसेनिका, २. अक्षर प्रसेनिका, ३. प्रदीपप्रसेनिका, ४. | प्रस्तावना (स्त्री०) [प्र+स्तुणिच्यु च्-टाप्] भूमिका, प्रारंभिनी, शशिप्रसेनिका, ५. सूर्यप्रसेनिका और ६. स्वप्नप्रसेनिका ये आमुख। प्रारम्भिकी, प्राक्कथन। समस्त विद्याएं हैं। ०प्रशंसा, सराहना। प्रसेवः (पुं०) [प्र+सिव्+घञ् प्रसेव+किन्+घञ्] थैला, बोरा, परिचय, सूत्रधार। बोरी, गहरा पात्र। प्रस्तावित (वि०) [प्रस्तु+णिच्+क्त] ०प्रारंभिक, उल्लिखित, प्रसेवकः (पुं०) बोरा, थैला। संकेतत। प्रस्कन्दनं (नपुं०) [प्रस्किन्द्+ल्युट्] ०छलांग लगाना, कूद प्रारंभ किया हुआ, शुरू किया हुआ। जाना, उछलना। इंगित। विरेचन, जुलाब, अतिसार। प्रस्तिरः (पुं०) पर्णशय्या, पुष्पशय्या। प्रस्कन्न (भू०क०कृ०) [प्रस्किन्द्+क्त] ०पतित, गिरा हुआ। | प्रस्तीतः (पुं०) [प्र+स्त्यै+क्त] कोलाहल करने वाला, ०छलांग लगया गया। शब्दायमान। ०पार किया गया। प्रस्तुत (भू०क०कृ०) [प्रस्तु+क्त] फैलती हुई, व्यापक होने प्रस्कन्नः (पुं०) जातिवहिस्कृत। वाली। 'समन्तादाप्तशाखाय प्रस्तुताऽस्मै सदा स्फीतिः।। ०पापी, दुष्ट। (सुद० ८२) प्रस्कुन्दः (पुं०) [प्रगतः कुन्दं चक्रम्] गोलाकार वेदी। घटित, उपागत, प्राप्त। (जयो०वृ० १/३) प्रस्खलनं (नपुं०) [प्र+स्खल+ल्युट्] लड़खड़ाना, डगमगाना, निष्पन्न, कृत, कार्यान्वित। गिर जाना, पतन। विचाराधीन, विचारणीय। प्रस्तरः (पुं०) [प्र+स्तृ+अच्] पर्णशय्या। आरंभ की गई। पुष्पशय्या, पर्यंक, खटिया। प्रस्तुतं (नपुं०) उपस्थित विषय, विचारणीय विषय। समतल शिखर। प्रस्थः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। ०प्रस्तर, चट्टान, पत्थर, पाषाण। (जयो० २/१२) साढ़े बारह पलों का एक प्रस्था ०मूल्यवान्, रत्न प्रस्तर। चार कुद्रव प्रमाण माप। प्रस्तरणं (नपुं०) [प्र+स्तृ+ल्युट्] ०पर्यंक, खटिया, पलंग। समतल भूमि-इन्द्रप्रस्था शय्या, विस्तरण, बिछौना। प्रस्थ (वि०) [प्र+स्था क] जाने वाला, दर्शन करने वाला, प्रस्तरोच्चयः (पुं०) पाषाण समूह। (जयो० ४/३८) पालन करने वाला। प्रस्तारः (पुं०) [प्र+स्तृ+घञ्] पुष्पशय्या, पर्णशय्या। यात्रा पर जाने वाला, फैलाने वाला। पलंग, खाट, खटिया। दृढ़, स्थिर। फैलाना, विस्तृत करना। प्रस्थम्पच (वि०) [प्रस्थ+पच्+अच्] प्रस्थमात्र, पकाने वाला। आच्छादित करना। प्रस्थानं (नपुं०) [प्र+स्था ल्युट] प्रयाण, गमन। ० चपटी सतह, समतल स्थान। (जयो० ३/१०६) वनस्थली, अरण्य, जंगल। कूच करना, विहरण। (जयो० ३/३४) एक छन्द विशेष। ०मरण, मृत्य, विनाश। प्रस्तावः (पुं०) [प्रस्तु+घञ्] ०आरंभ, शुरु। प्रस्थानकालोचित (वि०) उचित काल में प्रयाण। (जयो०वृ० रचना, कृति। (जयो०वृ० १/६२) (जयो० १/२) १२/३६) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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