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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छोडवाना ७०१ छोहू किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से आगे बढ़ | यौ० ओर-छोर-श्रादि-अन्त । स० क्रि० जाना, हाथ में लिये हुये कार्य को त्याग । (दे०) छोरना, छीनना, छोड़ना, खोलना । देना, किसी रोग या व्याधि का दूर करना, | विस्तार, सीमा, हद, नाक, कोर (दे० ) वेग के साथ बाहर निकलना, ऐसी वस्तु को किनारा । चलाना जिसमें कोई वस्तु कणों या छीटों छोराना-स० क्रि० दे० (सं० छारण ) के रूप में वेग से बाहर निकले, बचाना, __ बन्धन आदि अलग या मुक्त करना, शेष रखना। मुहा०-छोड़कर-अति खोलना, हरण करना, छीनना। छोड़ाना रिक्त, सिवाय, किसी कार्य या उसके किसी (हि.)। अङ्ग को भूल से न करना, ऊपर से गिराना। छोरा-संज्ञा. पु. (सं० शावक ) छोकड़ा, छोड़वाना-स० कि० दे० ( हि० छाड़ना का लड़का । स्त्री छोरी, छोकरी। प्रे० रूप ) छोड़ने का काम दूसरे से कराना । छोरा-छोरी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हिं. छारना) छोड़ाना-स० क्रि० (दे०) छुड़ाना। छीन खसोट, छीना छीनी । संज्ञा, पु-|-स्त्री. छोनिप -- संज्ञा पु० (दे०) क्षोणिप, राजा। दे० (सं० शावक ) लड़का, लड़की । छोनी-संज्ञा स्त्री० (दे०) क्षोणी। " छोनी में न छाँड़ा कोऊ छोनिप कौ | छोलदारी-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) खेमा, तम्बू । छौलदारी ( ग्रा०)।। छौना छोटो"-क. रामा०। छोलना-स० क्रि० दे० ( हि० छाल ) छोप-संज्ञा, पु० दे० (सं० क्षेप) मोटा छीलना। लेप, लेप चढ़ाने का कार्य, श्राघात, प्रहार, | वार, छिपाव, बचाव । छोह-छोहू-संज्ञा, पु० दे० (हि० क्षेाभ ) छोपना-स० क्रि० दे० (हि. छुपाना ) ! ममता, प्रेम, स्नेह, दया, अनुग्रह, कृपा । गीली वस्तु मिट्टी आदि को दूसरी वस्तु - "तजहु छोभ जनि छाँडहु छोहू'-रामा० । पर फैलाना, गाढ़ा लेप करना, गिलाव | छोहरिया छोहरी- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. लगाना थोपना, दबा कर चढ़ बैठना. धर छाह ) लड़की, छोरटी ( प्रान्ती. )। दबाना, ग्रसना, श्राच्छादित करना, ढकना, "नौवा केरि छोहरिया मोहि संग कूर" २० । छेकना, किसी बुरी बात को छिपाना, परदा छोहना - अ. क्रि० दे० (हि. छाह+ना डालना, वार या श्राघात से बचाना, धारोप प्रत्य० ) विचलित, चंचल या क्षुब्ध होना, करना। प्रेम या दया करना। छोभ-संज्ञा, पु० (दे०) क्षोभ । " तिनके छोहरा-संज्ञा, पु० (दे० ) छोरा । "छोटे तिलक छोभ कस तोरे "-रामा० । | छोहरा पै दयावान न भयो "-रघुराज० । कोभना*-अ० कि० दे० ( हि० छ।भ-न कोहाना-अ० क्रि० (हि. छोह ) मुहब्बत प्रत्य० ) करुणा, शंका, लोभ आदि के | करना, प्रेम दिखाना, अनुग्रह या दया करना। कारण चित्त का चंचल होना, क्षुब्ध होना। "कैसो पिता न हिये छोहाना"-प० । वि० छोभित । " सहज पुनीत मोर मन छोहिनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) अक्षौहिणी। छोभा "-रामा०। छोही*-वि० (हि० छ। ह ) ममता रखने छोम-वि० दे० (सं० शाम ) चिकना, वाला, प्रेमी, स्नेही, अनुरागी । कोमल। कोह'---संज्ञा, पु. ( दे० या हिं० छाह ) प्यार छोर-संज्ञा, पु० दे० ( हिं० छोड़ना) आयत | प्रेम, स्नेह । “ तजब छोभ जनि छाँडव विस्तार की सीमा, चौड़ाई का हाशिया। छोहू "-रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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