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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छौंक ७०२ जंजीर छौंक-संज्ञा, स्त्री दे० (अनु०) बघार, तड़का। छौंकना-प्र. क्रि० दे० (सं० चतुष्क) छौंकना -- स० कि० दे० (अनु० छायँ २) जानवर का कूदना या झपटना। बासने के लिये हींग ,मिरच आदि से मिले । छौना-संज्ञा, पु० दे० (सं० शावक ) पशु कड़कड़ाते घी को दाल आदि में डालना, : का बच्चा, जैसे मृग-छौना ( दे० ) लड़का । बघारना, मसाले मिले हुए कड़कड़ाते घी स्त्री० ौनी । “ छोनी में न छाँडा कोऊ में कच्ची तरकारी प्रादि भूनने के लिये डालना, तड़का देना । (प्रे० रूप) छौंकाना छोनिप को छौना छोटो"-लु० । छौंकवाना। वाना–स० क्रि० ( दे० ) छुआना। ज-हिन्दी या संस्कृत की वर्ण-माला के चवर्ग जंगी-वि० ( फा०) लड़ाई से सम्बन्ध का तीसरा व्यञ्जन । रखने वाला, जैसे--जंगी जहाज़, फ़ौजी, जंग-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) लड़ाई, युद्ध, सैनिक, सेना-सम्बन्धी, बड़ा, बहुत बड़ा, संग्राम। वि० जंगी। दीर्घकाय, वीर, लड़ाका। जंग-संज्ञा, पु० (फा०) लोहे आदि का संघा-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० जंघ ) पिंडुली, मुरचा। जाँध, रान, ऊरू (सं० )। जंगम-वि० (सं० ) चलने-फिरने वाला. जनना-जाँचना-प्र० कि० ( हिं० जाँचना) चर, जो एक स्थल से दूसरे पर लाया जा जाँचा जाना, देखा-भाला जाना, जाँच में सके, जैसे मनुष्य, पशु, पक्षी श्रादि जीव पूरा उतरना, उचित या अच्छा ठहरना, और चल सम्पत्ति । जान पड़ना, प्रतीत होना, माँगना। “मैं जंगल- संज्ञा, पु. (सं० ) जल-शून्य देश, जाँचन पायउँ नृप तोही"- रामा०। मरु भूमि, रेगिस्तान, वन । वि० जंगली। अँगला-संज्ञा, पु० दे० ( पुत्त० जेंगिला ) जत्रा-वि० दे० । हिं० जाँचना ) जाँचा खिड़की, दरवाजे, बरामदे आदि में लगी हुआ, सुपरीक्षित, अव्यर्थ, अचूक । हुई लोहे की छड़ों की पंक्ति, कटहरा, बाड़ा जज जंजल-वि० दे० ( सं० जर्जर ) पुराना, लोहे की छड़दार चौखट या खिड़की। कमज़ोर, बेकाम, निकम्मा । जंगली-वि० दे० (हि. जंगल ) जंगल में जंजाल संज्ञा, पु० दे० ( हि० जग --जाल) मिलने या होने वाला, जंगल-सम्बन्धी, प्रपञ्च, झंझट, बखेड़ा, बन्धन, फँपाव, बिना बोये या लगाये उगने वाला पौधा, । उलझन, पानी की भँवर. एक बड़ी पलीतेजंगल में रहने वाला, बनैला, ग्रामीण, दार बंदूक, बड़े मुंह को तोप, बड़ा जाल । असभ्य, उजड्ड । " संसारी जंजाल जाल दृढ़, निकरि सकै जंगार-संज्ञा, पु० (फा० ) ताँबे का कसाव, कोउ कैसे"- स्फु० । तुतिया, कसाव का रङ्ग । वि. जंगरी : जंजाली-वि० (हि. जंजाल , झगड़ालू, जंगारी-वि० दे० (फा० जंगार ) नीले बखेड़िया, फ़सादी। ' मनुवाँ जंजाली, तू रंग का। कौन चिरैया पाली' क०।। जंगाल--संज्ञा, पु० (दे० ) जंगार। संज्ञा, जंजीर-~संज्ञा स्त्री० (फ़ा०) साँकल, सिकड़ी, पु० (दे०) बड़ा बरतन । कड़ियों की लड़ी। (वि० जंजीरी)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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