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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खांगना ५२६ खागना त्रुटि, कमी, “ बरिस बीस लगि खाँग न खाँसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० काश-कास) होई"-५०। कफादि को गले या स्वास-नालियों से बाहर खांगना-अ० कि० दे० ( सं० खंज = करने के लिये सशब्द वायु फेंकने की क्रिया, खांड़ा) कम होना, घटना, छेदना, “ तन कास रोग, खांसने का शब्द । घाव नहीं मन प्रानन खाँगै"-रामा०। खांई--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० खानि ) गाँव, खाँगड़-खाँगड़ा-वि० दे० ( हि० खांग--5 महल या किले के चारों ओर खोदी गई -प्रत्य० ) खाँगवाला, शस्त्रधारी, अक्कड़, गहरी नहर, खंदक, खाँई (दे०)। उदंड, अक्खड़ । खाऊ-वि० दे० (हि. खाना, खा+ऊ) खाँगी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० खांगना ) कमी, | प्रत्य० ) पेटू, बहुत खाने वाला। घाटा, टि। खाक-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) धूल, मिट्टी। खाँच–संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. खींचना ) मुहा०-( कहीं ) खाक उड़नासंधि, जोड़, गठन, खचन । उजाड़ या बरबाद होना । खाक उड़ाना खाँचना-स० कि० दे० (सं० कर्पण ) या छानना ---मारा मारा फिरना, खाक अंकित करना, चिन्ह बनाना, खींचना. जल्द में मिलना ( मिलाना )-बिगड़ना, लिखना । “पूछेउ गुनिन्ह रेख तिन खाँची" बरबाद होना ( करना )। खाक रहना -रामा० । वि० खंचैया। ( न रहना )--नष्ट हो जाना । तुच्छ, कुछ खाँचा-संज्ञा, पु. ( दे० ) पतली टहनियों नहीं, वे ख़ाक पढ़ते हैं। खाख ( दे० )। का बड़े छेद वाला टोकरा, झाबा । स्त्री० खाकसारी-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) नम्रता, खाँची, खचिया ( दे० )। दीनता " खाकसारी पालियों की बेसबब खाँड-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० खंड ) कच्ची होती नहीं"। शक्कर । सौ० बँडरस-राब, जिससे कच्ची खाकसाही-संज्ञा, स्त्री. (दे०) काली खाँड़ बनती है। खांडना-स० कि० दे० ( सं० खंडन ) भस्म, " मारिमारि खाकसाही पातसाही कीन्हीं"-भू० तोड़ना, चबाना, कूचना । खाकसीर-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा खाकशीर) खाँडर-संज्ञा, पु० दे० (सं० खंड) टुकड़ा। खाँडा-संज्ञा, पु० दे० (सं० खड़) खड्ग । खूबकलाँ औषधि । संज्ञा, पु० (सं० खंड ) टुकड़ा, भाग। खाका-संज्ञा, पु. (फा० खाक ) ढाँचा, ....... एक म्यान द्वै खाँडे "-भ्र०।। नक़शा, थनुमान-पत्र, चिट्ठा, मसौदा, खाँधना-स० कि० ( दे० ) खाना, तख़मीना, नमूना । मुहा०-खाका .....'चोरि दधि कौने खाँधो-भ्र० । उड़ाना ( खींचना)-उपहास करना। खाँभ*-संज्ञा, पु० (दे०) खम्भा, लिफाफ़ा। खाका उतारना-नकल करना । स० क्रि० खाँभना। खाकी-वि० ( फा० ) खाक या मिट्टी के खाँवा--संज्ञा, पु० दे० (सं० खं) चौड़ी रंग का, भूरा, बिना सींची भूमि, खाक खाँई, एक पौधा। का । खाखी (दे०) राख लगाने वाला खांसना-अ. क्रि० दे० (सं० कासन) साधु। कफादि निकालने के लिये बल पूर्वक वायु खाग-संज्ञा, पु० (दे० ) गैंडे का सींग। को कंठ से बाहर निकालना, तथा शद खागना-प्र० कि० दे० (हि. खाँगकरना। | काँटा ) गड़ना, चुभना। भा० श० को०-६७ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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