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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ कुमारबाज़ कुमारवाज़ - संज्ञा, पु० दे० ( ० किमार + बाज़ - फा० ) किमारबाज़, जुारी । कुमारभृत्य – संज्ञा, पु० (सं० ) गर्भिणी को सुख से प्रसव कराने की विद्या, गर्भिणी एवं नव प्रसूत बालकों की चिकित्सा । कुमारललिता - संज्ञा स्त्री० (सं० ) ७ व का एक वृत्त । कुमारलसिता - संज्ञा, स्त्री० (सं०) ८ वर्णे का एक वृत्त । कुमारिल ( भट्ट ) संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण देशीय एक प्रसिद्ध दार्शनिक या मीमांसक ( ई० ६५० से ७०० ई० ) जो शंकराचार्य के समकालीन थे । इन्होंने वेदों का भाष्य किया, मीमांसा वार्तिक और तंत्र वार्तिक नामक ग्रंथ रचे, येही शवर भाष्य तथा श्रौतसूत्रों के टीकाकार भी थे । इन्होंने बौद्धों के मत का खंडन किया और प्रयाग में तुषानल से शरीर छोड़ा । कुमारी - संज्ञा स्त्री० (सं०) १२ वर्ष तक की कन्या, घीकुवाँर नवमल्लिका, बड़ी इलायची, सीता, पार्वती, दुर्गा, भारत के दक्षिण में एक अंतरीप, कन्या कुमारी, पृथ्वी का मध्य, श्यामा पक्षी, चमेली-सेवती, शाकद्वीपी ७ सरिताओं में से एक । वि० स्त्री० बिना व्याही, अपराजिता । यौ० संज्ञा पु० (सं० ) कुमारी -पूजन ( कुमारीपूजा-स्त्री ) - एक प्रकार की देवी पूजा, जिसमें बालिकाओं का पूजन किया जाता है (तंत्र) 1 कुमार्ग -संज्ञा पु० (सं०) बुरा मार्ग, अधर्म । वि० कुमार्गी – कुचाली, अधर्मी, कुमार्गगामी - बद चलन । कुमुख - वि० पु० (सं० ) बुरे मुख वाला, दुर्मुख, कटुभाषी स्त्री० - कुमुखी । कुमुद - ( कुमोद ) – संज्ञा, पु० (सं० ) कुई ( दे० ) कोका, लाल कमल, चांदी, विष्णु, एक वानर ( जो राम- सेना में था ) "लंकायाम् उत्तरे कोणे कुमुदो नाम वानरः ' "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुम्ही कपूर, दक्षिण-पश्चिम कोण का दिग्गज, एक द्वीप, दैत्य, नाग, केतुतारा, संगीत की एक ताल या रागिनी । कुमुद-बंधु- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा । कुमुद बंधु कर निंदक हासा - रामा० । कुमुदिनी कमोदिनी -संज्ञा, स्त्री० (सं०) कुई, कोई (दे० ) कमलिनी कुमद-युक्त सरोवर, नीलोफर, कमोदिनी (दे० ) । कुमुदिनीश - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कुमुदिनीपति, चंद्रमा । ܕܕ कुमेढ - संज्ञा, पु० ( सं०) दक्षिणी ध्रुव । कुम्मैत - ( कु.मैत) संज्ञा पु० दे० ( तु० ) लाल रंग, लाख, कुम्मैद (दे०) इसी रंग का घोड़ा । " तुर्की, ताजी और कुमैता घोड़ा अरबी, पचकल्यान । आल्हा | मुहा० - आठौ गाँठ कुम्मैत - चतुर, चालाक, धूर्त । For Private and Personal Use Only ܐܙ कुम्हड़ा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुष्मांड ) एक प्रकार की फैलने वाली बेल जिसके बड़े फल तरकारी के काम में ाते हैं, पेठा, (कुम्हड़ा दो प्रकार का होता है, सफ़ेद पेठा, हरे-पीले रंगा, जिसे काशीफल या कद्दू कहते हैं) । मुहा० - कुम्हड़े की बतिया ( कुम्हड़बतिया ) - कुम्हड़े का छोटा कच्चा फल अशक्त मनुष्य । " इहाँ कुम्हड़ बतिया को नाहीं ”कुम्हडौरी, कुम्हरौरी - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) उर्द की पीठी में कुम्हड़े के टुकड़े मिलाकर बनाई जाने वाली बरी, कँहरौरी (दे० ) । कुम्हलाना- - भ० क्रि० दे० (सं० कु + म्लान) मुरझाना, सूखने पर होना, प्रभा-हीन होना, प्रसन्नता - रहित होना । वि० कुम्हलाया, - रामा० । स्त्री० कुम्हलाई । कुम्हार - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुंभकार ) कुलाल, मिट्टी के बरतन बनाने वाला, कुंभार (दे० ) । स्त्री० - कु. म्हारिन । कुम्ही* – संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कुभी ) जलकुंभी, पानी पर फैलने वाला पौधा ।
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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