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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रहम्मति अहवान अहम्मति-संज्ञा, स्त्रो० (सं० अहम् + अहलकार-संज्ञा, पु० (फा ) कर्मचारी, मति ) मनमौजी, धमंडी, अपने को बड़ा कारिंदा। मानने वाली धारणा। संज्ञा, स्त्री०-अहलकारी। संज्ञा, स्रो० (सं० ) अविद्या, अहंकार । हलमद-संज्ञा, पु. ( फा० ) मुकद्दमों प्रहमित-संज्ञा, खी० दे० (सं० अह- की मिसिलों को रखने और अदालत की म्मति) घमंड, गर्व। आज्ञानुसार हुक्मनामे जारी करने का काम " जिता काम अहमति मन मांहीं"-- करने वाला कचहरी या अदालत का एक रामा०। कर्मचारी। सर्व (सं० अहम् + इति ) मैं ही हूँ यह | संज्ञा, स्त्री० अहलमदी। भाव । अहलना--अ० कि० ( दे० ) हिलना, अहमेव - संज्ञा, पु० (सं० ) गर्व, घमंड, | दहलना। मद, अभिमान, अहंकार, हमेव ( ब्र० दे० ) प्रहलाद--संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रह्लाद ) " और धराधरन को मेट्यो अहमेव आनंद, प्रसन्नता, प्रमोद । अहलादित--वि० दे० (सं० प्रह्लादित ) प्रहर-संज्ञा, पु० (दे० ) पोखरा, पानी आनंदित, प्रमुदित । का गड्ढा । प्रहल्या-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) गौतम ऋषि प्रहरन--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० श्रा। की पत्नी, गौतमी, इनके सौंदर्य पर मुग्ध धारण) निहाई। होकर इन्द्र ने चन्द्रमा को मुर्गा बना के और गौतम को प्रातः काल हो जाने का " ज्यौं अहरन सिर धाव "..- कबीर० ।। भ्रम करा स्नान-ध्यान को भिजवा श्राप (दे० ) अहरनि। गौतम-रूप में आकर इनके चरित्र को प्रहरना--स० क्रि० दे० (सं० आहरण ) दूषित किया था, गौतम को यह रहस्य लकड़ी को चीर कर सुडौल करना, डौलाना, योग-ध्यान में ज्ञात हो गया और उन्होंने (दे०) अहारना, मारना, पीटना, मार इन्द्र, चन्द्र तथा असत्य बोलने पर इन्हें मार कर सुधारना । शाप दिया, जिससे इन्द्र के शरीर में सहस्त्र प्रहरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० आहरण ) योनि-चिन्ह, चंद्रांक में कलंक हो गये, कंडों का ढेर, कंडों का ढेर ( जलता हुआ) इन्हें उन्होंने वायु सेवन करने, निराहार जिसमें भोजन बनाया जाय । रहने तथा तपस्या करने की आज्ञा दी। (प्रान्ती०-अदहरा)। कौशिक की आज्ञा से राम ने इनका प्रहरहः-अव्ययौ० (सं० अहः । अहः ) अातिथ्य स्वीकार कर इन्हें पवित्री-कृत दिन दिन, प्रतिदिन, रोज़ रोज़ ।। किया और तब ये गौतम को प्राप्त हो अहर्मुख-संज्ञा, पु० (सं०) प्रातः काल, । सकी। तुलसीकृत रामायण में शाप से भोर, सबेरा, प्रत्यूष, प्रभात-समय, भिन. इनका पत्थर होना और राम-पद-स्पर्श सार, सकार (दे० )। से फिर स्त्री होकर गौतम को प्राप्त करना अहर्षण-संज्ञा, पु० दे० (सं० आहर्षण ) लिखा है। प्रसन्नता, प्रमोद, हर्षाभाव । अहवान--संज्ञा पु० दे० (सं० आह्वान ) वि० अहर्षित-प्रसन्न, मुदित, अप्रसन्न। आह्वान, आवाहन, बुलाना, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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