SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनमानुस १२३१ बनात बनमानुस-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० वन- | बनवना*-स० क्रि० दे० यौ० (हि. मानुष ) जंगली श्रादमी, गोरिल्ला श्रादि बनाना ) बनाना, बनावना (दे०)। बनैले मनुष्य-जैसे जंतु। बनबसन*-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० बनमान्ना-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वनमाला) | बनवसन) पेड़ों की छाल का वस्त्र, सूती पारिजात, मंदार, कमल, कंद और तुलसी कपड़ा। के फूल-पत्तों से बनी माला, फूल पत्तों से बनवाई--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बनवाना) बनी माला, बनमाल (दे०)। " भूषन बन- बनवाने का कार्य, बनवाने की मजदूरी। माला नैन बिसाला सोभा-सिंधु खरारी" बनवारी--संज्ञा, पु० दे० (सं० बनमाली) कृष्ण। -रामा०। "अब बनवारी बनवारी बात त्यागिये'बनमाती-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० वन- मन्ना० । दे० यौ० (हि. बनवारी) बागमालिन् ) बनमाला पहनने वाला. नारायण, वाटिका, वन का. जल । वि० बनवाली। श्रीकृष्ण, विष्णु मेघ, बादल. घने बन या बनवैया-सज्ञा, पु० दे० (हि० बनाना+वैयाबादल का प्रदेश । " एहो बनमाली तुम कौन प्रत्य० ) निर्माता, रचयिता, बनाने वाला। बनमाली तुम कौन बनमाली माल उर में बनमी, बंसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वंशी) सुछाके हौ' ---पद्मा० । यौ०-उपवन बाँसुरी, बंशी, मुरली, मछली फँसाने का का माली। काँटा । बनर-संज्ञा, पु० (दे०) एक हथियार । बनस्थली-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० बनरखा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वन रक्षक, बनस्थली पु. बनस्थल ) बन-खंड, जंगल हि. बन+रखना) जंगल की रखवाली करने का कोई हिस्सा या प्रदेश । "बनस्थली बीच वाला, बन-रक्षक, बहेलियों की एक जाति । विराजती रही".-प्रि० प्र०। बनरपकड़-संज्ञा, पु० यौ० (दे०) दुराग्रह, बना, बन्ना--संज्ञा, पु० दे० (हि० बनना) निदित हठ । वर, दुलहा, दूल्हा । स्त्री० बनी । संज्ञा, पु. बनरा*-संज्ञा पु० दे० (सं० वानर ) बंदर, (दे०) दंडकला छद (पि०)। वानर, बँदरा (दे०) । "सिन्धु तस्यो उनको बनाइ-बनाय-कि० वि० दे० (हि० बनाकर बनरा"- रामचं० । संज्ञा, पु. दे० (हि. भली-भाँति ) नितांत, अत्यंत, विलकुल, वनना ) दूल्हा, दुलहा बर, विवाह के समय अच्छी तरहा, भली-भाँति । "जो ना चमकति बिजुली बहिगा रहै बनाय"-स्फु० ॥ पू० क. का एक गीत । स्त्री. बनरी। क्रि० (७. भा० ) बनाकर (हि.)। बनराज-बनराय--संज्ञा, पु० दे० यौ० बनाउरिक्षा--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० घाणा( सं० वनराज ) सिह बाघ, शेर, बहुत बड़ा पेड़ । “देख्या बनराज, बनराज ही की छाया वली ) तीरों की माला या पंक्ति, बाणों की अवली या वर्षा। परयो "- मन्ना०। बनाग्नि-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० वनाग्नि) बनराजी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे०) बनोपवनों | दावानल, जंगल की आग, बनागि (दे०)। की पंक्ति या वन का समूह, बनराज (सं.)। नागी-मज्ञा, स्रो० यौ० ( दे० ) बनाग्नि बनरी-संज्ञा, स्रो० दे० (दे० बनरा) बानरी, | (सं.)। " वर्षा बिना नास भई बनागी" बंदरिया, नववध, दुलहिन । -- कु० वि० ल. बनरुह-संज्ञा, पु० दे० (सं० बनरुह ) जंगली बनात- सज्ञा, स्त्री० दे० (हि० वाना) एक पेड़, कमल। बदिया ऊनी कपड़ा। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy