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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र व्यापारी कामों में कीलाक्षर लिपि के साथ-साथ इस्तेमाल में आती थी, अखमनियों के शासनकाल में काफी दूर-दूर तक फैल चुकी थी। मिस्र अरब और लघु एशिया में इस काल के बहुत-से अरमैक अभिलेख मिले हैं। एक अभिलेख तो ईरान में भी मिला है। मिस्र से कई सरकारी पाइरी (श्रीपत्र के डंठलों से बने कागज पर लिखी पुस्तकें या दस्तावेज) लघु एशिया में ईरानी क्षत्रपों द्वारा ढाले अनेक सिक्के109 मिले हैं जिसपर अरमैक में लेख हैं। इसके अतिरिक्त बुक आफ एजरा IV. 7 का वह कौतूहलपूर्ण बयान भी है जिसमें आरामी लिपि और भाषा में अर्टोजेक्सीयों के उस पत्र का उल्लेख है जो उन्होंने समारिटनों को भेजा था। इन सब बातों पर सामूहिक रूप में विचार करने से स्पष्ट है कि इस मान्यता के लिए पर्याप्त कारण है कि अरमैक लिपि का सामान्य इस्तेमाल क्षत्रपों के कार्यालयों में ही नहीं, बल्कि सूसा के शाही सचिवालय में भी होता था। इसकी असली वजह यह थी कि ईरानी सिविल सेवा में लिपिक, लेखाकार, मुद्राध्यक्ष या ऐसे ही बहुत-से पदों पर बहुत-से आरामी काम करते थे। पुराने राजवंशों के खंडहरों पर जब तेजी से ईरानी साम्राज्य का निर्माण हुआ तो ईरानी शासकों को छोटे-मोटे पदों पर पुराने सरकारी कर्मचारी अवश्य मिले होंगे। इनमें आरामी प्रमुख थे । इनके पदों पर इनकी बहाली इन नये शासकों के लिए सुविधाजनक ही नहीं, अपरिहार्य भी लगी होगी। ऐसी स्थिति में यह कल्पना स्वाभाविक है कि दारा ने जब ईरानी प्रशासन का संघटन पूर्ण कर लिया होगा तो ईरानी क्षत्रपों ने भारतीय सूबों में भी आरामी अधीनस्थ कर्मचारियों की नियुक्ति की होगी। इस प्रकार भारतीय प्रजा को विशेषकर स्थानीय राजाओं के लिपिकों और नगरों के अध्यक्षों को अरमैक लिपि सीखने के लिए अवश्य ही बाध्य किया गया होगा। ईरानी और भारतीय दफ्तरों के आपसी पत्र-व्यवहार से संभवतः पहले उत्तरी-पश्चिमी प्राकृत में अरमैक अक्षरों का व्यवहार शुरू हआ। बाद में इससे पुरानी भारतीय ब्राह्मी के सिद्धांतों के अनुसार इस लिपि में भी फेर बदल हुई10 और इससे अंत में खरोष्ठी निकली। मध्य और आधुनिक युग में इसी क्रम से कई भारतीय उपभाषाओं के लिए अरबी लिपि का भी ग्रहण हुआ । यह भी विदेशी दबाव की वजह से ही हुआ। इसके अक्षर भी या तो कुछ 109. क्लेरमांट-गेन्त्र, रेव्यू आर्केलाजिके, 1878-79; बर्गर, हिस्ट. डे एल एविक्रट डेंस एल ऐंटिक्विटे, 214, 218 तथा आगे । ____ 110. वेवर, इंड. स्किजेन, 144 तथा आगे; थामस, प्रि., इं. ऐ. ii, 146; क., क्वा. ऐ. इं. 33; और आगे 9, आ. 4. 40 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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