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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरोष्ठी की उत्पत्ति ____8. खरोष्ठी की उत्पत्ति 05 खरोष्ठी दायें से बायें को लिखी जाती है। लेखन की इस शैली से इस बात की अधिक संभावना प्रकट होती है कि इसके तत्व सेमेटिक लिपि से उधार लिये गये हैं । इसके न, ब, र और व अक्षरों के रूप अरमैक के संक्रांतिकालीन रूपों के एकदम समान हैं। इससे ई. थामस ने यह माना है कि खरोष्ठी का अरमक लिपि से घनिष्ठ संबंध है ।106 इनके इस मत को अभी तक किसी ने चुनौती नहीं दी है। हाल ही में आई. टेलर और अले. कनिंघम ने इस मत को और भी निश्चित रूप दे दिया है। य अरमैक अक्षरों को भारत में प्रचारित करने का श्रेय प्रथम अखमनियों को देते हैं ।107 इस राय के लिये ये कारण दिये जा सकते हैं : (1) पश्चिमी पंजाब में प्राप्त अशोक के आदेश-लेखों में 'लेख' (writing, edict) के लिए 'दिपि' शब्द का प्रयोग हुआ है। स्पष्टतया यह शब्द पुरानी ईरानी भाषा से उधार लिया गया है। इसीसे दिपति 'लिखता हैं', दिपपति; 'लिखाता है' भी बना लेते हैं, दे० पृ. १२ । (2) जिन जिलों में खरोष्ठी के अभिलेख मिलते हैं---विशेषकर प्राचीन- वे भारत के वे भाग हैं, जो संभवतः ईरानी शासन में, ई. पू. 500 से ई. पू. 331 तक लगातार या अंतरालों के साथ रह चुके हैं। ईरानी सिग्लोई में कुछ पर खरोष्ठी और ब्राह्मी के एक-एक अक्षर अंकित हैं। 108 इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये सिक्के भारत में ईरानी शासन-काल में ढाले गये थे। खरोष्ठी ई. पू. की चौथी शती के अधिकांश में--निश्चय ही ई. पु. 331 में ईरानी साम्राज्य के पतन के समय -भारत में प्रचलित थी। अशोक के आदेश-लेखों में कुछ अक्षरों के कई-कई रूपों का होना और इसी प्रकार कई संयुक्ताक्षरों का एकदम घसीटकर लिखा जाना; जैसे स्त, स्प आदि (दे० 11, इ, 2, 3.) यह बतलाता है कि ई. पू. तीसरी शती के मध्य में इस लिपि का इतिहास काफी पुराना हो चुका था। (4) सेमेटिक पुरालिपि के क्षेत्र में इधर हाल में जो खोजें हुई हैं उनसे पता चलता है कि अरमैक लिपि, जो असीरिया और बैबिलोन में पहले से ही सरकारी और 105. वही, 2, 92 तथा आगे । 106. प्रि., ए. ऐ. 2, 144 तथा आगे; बाद के सिक्कों पर बाईं ओर से दाई ओर को लिखी जाने वाली खरोष्ठी के संबंध में ज. ए. सो. बं. 1895, पृ. 83 तथाः आगे देखिए। 107. टेलर, दि अल्फाबेट ii, 261 तथा आगे; कः, क्वा. ऐ. इं. 33 ___108. ज. रा. ए. सो. 1895, पृ. 865 तथा आगे। 39 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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