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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरोष्ठी की उत्पत्ति फेरबदल से या बिना फेर-बदल के इस्तेमाल किये गये या किये जा रहे हैं। (5) इन अंतिम अनुमानों का मेल खरोष्ठी के अक्षरों के स्वरूप से भी बैठता है। यह लिपि भी लिपिकों और व्यापारियों के इस्तेमाल के लिए है; दे० ऊपर पृ. 38 (6) अंत में, इनकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि खरोष्ठी के अधिकांश चिह्न ई. पू. पांचवी शती के सक्कारा और तेइम। के (ई. पू. 482 और लगभग ई. पू. 500) अभिलेखों में मिलने वाले अरमैक चिह्नों से अत्यंत आसानी से व्युत्पन्न सिद्ध किये जा सकते हैं और कुछ अक्षर उत्तरकालीन असीरियाई बाटों और बैबिलोनी मुद्राओं और जवाहरातों पर मिलने वाले इससे पूर्व के अक्षरों से मिलते-जुलते हैं। दो-तीन अक्षर लघुतर तेइमा अभिलेख (Lesser Temia Inscription) स्टेले बैटिराना और सेरापियम के तर्पण-पटल के अक्षरों से बहुत ही निकट दीखते हैं। खरोष्ठी के अक्षरों की लेखनशैली--लंबे-लंबे और बड़ी दुमों वाले अक्षर--- मेसोपोटामिधाई बाटों, मुहरों और उत्कीर्ण पत्थरों के अक्षरों की है । ऐसे ही अक्षर सक्कारा, तेइमा और सेरापियम में भी आते हैं। अन्य लेखकों ने 11 इनकी तुलना मिस्र के पेपाइरी पर मिले अरमैक अक्षरों से की है। इनमें कम-से-कम कुछ जैसे तारिने सिस, अखमनी काल के हैं। किन्तु ये लिखावटें उतनी अच्छी तरह नहीं मेल खाती। इनमें कुछ चिह्न तो इतने घसीट हैं कि ये खरोष्ठी अक्षरों के आदि रूप हो ही नहीं सकते। इनकी लेखन-शैली महीन प्रचलित हाथ की लिखावट की है। यदि और सूक्ष्म दृष्टि से खोज करें तो कुछ साम्य जरूर दिखाई देता है, पर यह साम्य किसी अन्य कारण से न होकर समान रूप से विकास होने की वजह से है। इन सभी दृष्टियों से विचार करने पर यही प्रतीत होता है कि खरोष्ठी का विकास ई. पू. पाँचवीं शती में हुआ । 9. व्युत्पत्ति के व्योरे साथ की तालिका में व्युत्पत्ति के व्योरे दिखाये गये हैं। स्त० I के चिह्न (सं. 10, स्त० I, a को छोड़कर) यूटिंग के Tabula Scripturae Aramaicae, 1892, स्त० 6, 8, 9, 11 और 12 से लिये गये हैं। स्त० II के चिह्न भी ___111. हलेवी, ज. ए. 1885, ii, 243-267, का विश्वास है कि खरोष्ठी ई. पू. 330 में पैपाइरी और सिसली के एक सिक्के के 16 अक्षरों से निकली। देखि. रिव्यू से मिटिके, 1895, 372 तथा आगे । जहां इसे पैपाइरी की लिपि और मिस्र के ओस्त्रक से निकला बताया जाता है । 41 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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