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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षत्रप-वंश । रापसन साहबका अनुमान है कि शायद यह सत्यदामा जीवदामाका बड़ा भाई होगा । रुद्रसेन प्रथम । [ श० सं० १२१– १४४ ( ई० स० १९९ - २२२= वि० सं० २५६–२७९ ) ] यह रुद्रसिंह प्रथमका पुत्र था । 9 इसके चाँदी और मिश्रधातुके सिक्के मिलते हैं । इन पर शक संवत् लिखा हुआ होता है । इनमेंसे क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्कों पर एक तरफ " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहसपुत्रस राज्ञः क्षत्रपस रुद्रसेनस " और दूसरी तरफ श० सं० १२१ या १२२ ' लिखा रहता हैं । तथा महाक्षत्रप उपाधिवालों पर उलटी तरफ " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस पुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनस " और सीधी तरफ श० सं० १२२ से १४४ तकका कोई एक संवत् लिखा होता है । इसके मिश्रधातुके सिक्कोंपर लेख नहीं होता । केवल श० सं० १३१ या १३३ होनेसे विदित होता है कि ये सिक्के भी इसीके समय के हैं । रुद्रसेन के समय के दो लेख भी मिले हैं। पहला मूलवासर ( बड़ौदा राज्य ) गाँव में मिला है। यह श० सं० १२२ की वैशाख कृष्णा पञ्चमीका है । इसमें इसकी उपाधि “ राजा महाक्षत्रप स्वामी " लिखी है । दूसरा लेख जसधन ( उत्तरी काठियावाड़) में मिला है। यह श० सं० १२७ ( या १२६ ) की भाद्रपद कृष्णा पञ्चमीका है । इसमें एक तालाब बनवाने का वर्णन है । इसमें इनकी वंशावली इस प्रकार दी है --- ( १ ) यह २ का अङ्क स्पष्ट पढ़ा नहीं जाता है । (3) J. R. A. S., 1890, p. 652, ( 3 ) J. R. A. S., 1890, p. 652, २३ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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