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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश इसके मिश्रधातुके सिक्कों पर एक तरफ " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस” और दूसरी तरफ श० स० ११' x लिखा मिलता है। ___ इस रुद्रसिंहके समयके दो लेख भी मिले हैं। इनमेंसे एक श० सं० १०३ की वैशाख शुक्ला पञ्चमीका है । यह गुंडा ( काठियावाड़) में मिला है । इसमें इसकी उपाधि क्षत्रप लिखी है । दूसरा लेख चैत्र शुक्ला पञ्चमीका है । यह जूनागढ़में मिला है और इसका संवत् टूट गया है। इस लेखमें राजाका नाम नहीं लिखा । केवल जयदामाके पौत्रका उल्लेख है । अतः पूरी तौरसे नहीं कह सकते कि यह लेख इसीका है. या इसके भाई दामजदका है। इसके तीन पुत्र थे। रुद्रसेन, संघदामा और दामसेन । सत्यदामा। [सम्भवतः श० सं० ११९-१२० (ई. स. १९७ १९८-वि० सं० २५४-२५५)] यह दामजदश्री प्रथमका पुत्र था। इसके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं। इन पर एक तरफ़ “ राज्ञो महाक्षत्रपस्य दामजदश्रिय पुत्रस्य राज्ञो क्षत्रपस्य सत्यदाम्न" लिखा रहता है । यह लेख करीब करीब संस्कृत-रूपसे मिलता हुआ है। इन सिक्कोंके दूसरी तरफ शक-संवत् लिखा होता है । परन्तु अब तक एक सौके अगले अङ्क नहीं पढ़े गये हैं। ___ सत्यदामाके सिक्कोंकी लेख-प्रणालीसे अनुमान होता है कि या तो यह अपने पिता दामजदश्री प्रथमके महाक्षत्रप होनेके समय क्षत्रप था या अपने भाई जीवदामाके प्रथम बार महाक्षत्रप होनेके समय । (१) यह अङ्क स्पष्ट नहीं पढ़ा जाता है। (२) Ind. Ant, Vol. x, P. 157, (३) J. R. A.S., 1890, P. 651, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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