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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश १ राजा महाक्षत्रप भद्रमुख स्वामी चष्टन २ राजा क्षत्रप स्वामी जयदामा ३ राजा महाक्षत्रप भद्रमुख स्वामी रुद्रदामा ४ राजा महाक्षत्रप भद्रमुख स्वामी रुद्रसिंह ५ राजा महाक्षत्रप स्वामी रुद्रसेन इसमें जयदामाके नामके आगे भद्रमुखकी उपाधि नहीं है । इसका कारण शायद इसका महाक्षत्रप न हो सकना ही होगा । तथा पूर्वोक्त वंशावलीमें दामजदश्री और जीवदामाका नाम ही नहीं दिया है । इसका कारण उनका दूसरी शाखामें होना ही है। रुद्रसेनके दो पुत्र थे। पृथ्वीसेन और दामजदश्री (द्वितीया )। पृथ्वीसेन । [श० सं० १४४ ( ई० स० २२२ = वि० स० २७९)] यह रुद्रसेन प्रथमका पुत्र था। इसके केवल क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके ही सिक्के मिले हैं। इनपर एक तरफ़ "राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनस पुत्रस राज्ञो क्षत्रपस पृथिविसेनस" और दूसरी तरफ़ श० सं० १४४ लिखा रहता है। यह राजा क्षत्रप ही रहा था । महाक्षत्रप न हो सका; क्योंकि इसी वर्ष इसका पिता मर गया और इसके चचा संघदामाने राज्यपर अपना अधिकार कर लिया। (इसके बाद शकसंवत् १५४ तकका एक भी क्षत्रप उपाधिवाला सिक्का अब तक नहीं मिला है।) संघदामा । [ श० सं० १४४, १४५ ( ई० स० २२२, २२३-वि० सं० २७९, २८०) यह रुद्रसिंह प्रथमका पुत्र था। २४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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