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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश पर अधिकार कर लिया था और उधरसे राजपूताने पर भी मुसलमानोंके आक्रमण आरम्भ हो गये थे। ८-दुर्लभराज। __ यह गोपेन्द्रराजका उत्तराधिकारी था । इसको 'दूलाराय' भी कहते थे। पृथ्वीराज-विजयमें लिखा है कि यह गौड़ोंसे लड़ा था। इसी समय पहले पहल अजमेर पर मुसलमानोंका आक्रमण हुआ था और उसी युद्ध में यह अपने ७ वर्षके पुत्रसहित मारा गया था । सम्भवतः यह आक्रमण वि० सं० ७८१ और ७८३ (ई० स० ७२४ और ७२६ ) के बीच सिंधके सेनानायक अब्दुल रहमानके पुत्र जुनैदके समय हुआ होगा। ९-गवक (प्रथम )। यह दुर्लभराजके पीछे गद्दीपर बैठा । यद्यपि 'पृथ्वीराज-विजय' में इसका नाम नहीं लिखा है, तथापि बीजोल्यासे और हर्षनाथके मन्दिरसे मिले हुए लेखोंमें इसका नाम विद्यमान है। ___ इसने अपनी वीरताके कारण नागावलोक नामक राजाकी सभामें 'वीर' की पदवी प्राप्त की थी। यह नागावलोक वि० सं० ८१३ ई० स० ७५६ ) के निकट विद्यमान था । क्योंकि वि० सं० ८१३ का चौहान भर्तृवृद्ध द्वितीयका एक ताम्रपत्र मिला है। यह भर्तृवृद्ध भरुकच्छ ( भड़ौच-गुजरात ) का स्वामी था । इसके उक्त ताम्रपत्रमें इसको नागावलोकका सामन्त लिखा है। इससे सिद्ध होता है कि गूवक भी वि० सं० ८१३ ( ई० स० ७५६ ) के करीब विद्यमान था। १०-चन्द्रराज (द्वितीय)। यह गूवकका पुत्र और उत्तराधिकारी था । २३० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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