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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ - गूवक ( द्वितीय ) | यह चन्द्रराज द्वितीयका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । १२ - चन्दनराज | यह गूवक द्वितीयका पुत्र था और उसके पछि उसके राज्यका स्वामी हुआ । 6 पूर्वोक्त हर्षनाथ के लेखसे पता चलता है कि इसने " तँवरावती " ( देहली के पास ) पर हमला कर वहाँके तँवरवंशी राजा रुद्रेणको मार डाला । १३ - वाक्पतिराज । यह चन्दनराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसको बप्पराज भी कहते थे । इसने विन्ध्याचलतक अपने राज्यका विस्तार कर लिया था । हर्षनाथ के लेखसे पता चलता है कि तन्त्रपालने इसपर हमला किया था । परन्तु उसे हारकर भागना पड़ा । यद्यपि उक्त तन्त्रपालका पता नहीं लगता है, तथापि सम्भवतः यह कोई तँवर - वंशी होगा ! वाक्पतिराजने पुष्कर में शायद एक मन्दिर बनवाया था । इसके तीन पुत्र थे - सिंहराज, लक्ष्मणराज और वत्सराज | इनमें से सिंहराज तो इसका उत्तराधिकारी हुआ और लक्ष्मणराजने नाडोल ( मारवाड़ ) में अपना अलग ही राज्य स्थापित किया । १४- सिंहराज | यह वाक्पतिराजका बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी था । यह राजा बड़ा वीर और दानी था । लवण नामक राजाकी सहायता से तँवरोंने इसपर हमला किया । परन्तु उन्हें हारकर भागना पड़ा । इसी राजाने वि० सं० १०१३ ( ई० स० ९५६ ) में हर्षनाथका मन्दिर २३१ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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