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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान-वंश। ४-जयराज (जयपाल)। यह सामन्तदेवका, पुत्र था और उसके बाद राज्यका स्वामी हुआ। अणहिलवाड़ा (पाटण ) के पुस्तक-भंडारसे मिली हुई 'चतुर्विंशति-प्रबन्ध' नामक हस्तलिखित पुस्तकमें इसका नाम अजयराज लिखा है । इसकी उपाधि ' चक्री' थी। यह शायद वृद्धावस्थामें वानप्रस्थ हो गया था और इसने अपना आश्रम अजमेरके पासके पर्वतकी तराईमें जनाया था। यह स्थान अबतक इसीके नामसे प्रसिद्ध है । प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला ६ के दिन इस स्थानपर मेला लगता है और उस दिन अजमेर-नगरवासी अपने नगरके प्रथम ही प्रथम बसानेवाले इस अजयपाल बाबाकी पूजा करते हैं। यह विक्रम संवत्की छठी शताब्दीके अन्तमें या सातवीं शताब्दीके आरम्भमें विद्यमान था। ५-विग्रहराज (प्रथम)। यह जयराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । ६-चन्द्रराज (प्रथम)। यह विग्रहराजका पुत्र था और उसके पीछे राज्यका स्वामी हुआ। ७-गोपेन्द्रराज। यह चन्द्रराजका भाई और उत्तराधिकारी था । पूर्वोल्लिखित चतु. र्विंशति-प्रबन्धमें इसका नाम गोविन्दराज लिखा है। इस वंशका सबसे प्रथम राजा यही था; जिसने मुसलमानोंसे युद्ध कर सुलतान बेग वरिसको पकड़ लिया था । परन्तु इतिहासमें इस नामका कोई सुलतान नहीं मिलता है । अतः सम्भव है कि यह कोई सेनापति होगा । क्योंकि इसके पूर्व ही मुसलमानोंने सिन्धके कुछ भाग For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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