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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 6 www.kobatirth.org भारतके प्राचीन राजवंश हम्मीर महाकाव्य ' नामक काव्य बनाया था । यह नयचन्द्र जैनसाधु था और इसने उक्त काव्यकी रचना वि० सं० १४६० ( ई० स० १४०३ ) के करीब की थी । उसमें लिखा है: 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" पुष्कर क्षेत्र में यज्ञ प्रारम्भ करते समय राक्षसों द्वारा होनेवाले विघ्नोंकी आशङ्का से ब्रह्माने सूर्यका ध्यान किया। इस पर यज्ञके रक्षार्थ सूर्यमण्डल से उतर कर एक वीर आपहुँचा । जब उपर्युक्त यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो गया, तब ब्रह्माकी कृपासे वह वीर चाहमान नाम से प्रसिद्ध होकर राज्य करने लगा । "" पृथ्वीराज - विजय नामक काव्यमें भी इनको सूर्यवंशी ही लिखा है । मेवाड़राज्य में बीजोल्या नामक गाँव के पासकी एक चट्टान पर वि० सं० १२२६ ( ई० स० ११७० ) का एक लेख खुदा हुआ है । यह चौहान सोमेश्वर के समयका है । इसमें इनको वत्सगोत्री लिखा है । मारवाड़राज्य में जसवन्तपुरा गाँवसे १० मील उत्तरकी तरफ एक पहाड़ी के ढलावमें 'सुंधा माता' नामक देवीका मन्दिर है । उसमें के वि० सं० १३१९ ( ई० स० १२६३ ) के चौहान चाचिगदेवके लेखमें भी चौहानोंको वत्सगोत्री लिखा है । उसमेंका वह श्लोक यहाँ उद्धृत किया जाता है: श्रीमद्वत्समहर्षिहर्ष नयनोद्भूतांबुपूरप्रभा पूर्वोर्वीधर मौलिमुख्य शिखरालंकारतिग्मद्युतिः । पृथ्वीं त्रातुमपास्तदैत्यतिमिरः श्रीचामानः पुरा वीरःक्षीरसमुद्रसोदरयशोरराशिप्रकाशोभवत् ॥ ४ ॥ उपर्युक्त लेखोंसे स्पष्ट प्रकट होता है कि उस समय तक ये अपनेको अग्निवंशी या वशिष्ठगोत्री नहीं मानते थे । पहले पहल इनके अग्निवंशी होनेका उल्लेख 'पृथ्वीराजरासा ' नामक भाषा के काव्य में मिलता है । यह काव्य वि० सं० १६०० ( ई० स० २२६ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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