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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान वंश | चौहान वंश | उत्पत्ति । यद्यपि आजकल चौहानवंशी क्षत्रिय अपनेको अग्निवंशी मानते हैं और अपनी उत्पत्ति परमारोंकी ही तरह वशिष्ठके अग्निकुंड से बतलाते हैं, तथापि वि० सं० १०३० से १६०० ( ई० स० ९७३ से १५४३ तक के इनके शिलालेखोंमें कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है । प्रसिद्ध इतिहासलेखक जेम्स टौड साहबको हाँसी के किलेसे वि० सं० १२२५ ( ई० स० १९६७ ) का एक शिलालेखे मिला था । यह चौहान राजा पृथ्वीराज द्वितीयके समयका था । इस लेख में इनको चन्द्रवंशी लिखा था । आबू पर्वत परके अचलेश्वर महादेवके मन्दिर में वि० सं० १३७७ ( ई० स० १३२० ) का एक शिलालेख लगा है। यह देवड़ा (चौहान) राव कुंभाके समयका है । इसमें लिखा है: " सूर्य और चन्द्रवंश अस्त हो जाने पर, जब संसारमें उत्पात कायम हुआ, तब वत्सऋषिने ध्यान किया । उस समय वत्स ऋषिके ध्यान, और चन्द्रमा के योगसे एक पुरुष उत्पन्न हुआ... ।” उपर्युक्त लेखसे भी इनका चन्द्रवंशी होना ही सिद्ध होता है । कर्नल टॉड साहब ने भी अपने राजस्थानमें चौहानोंको चन्द्रवंशी, वत्सगोत्री और सामवेदको माननेवाले लिखा है । वीसलदेव चतुर्थक समयका एक लेख अजमेर के अजायबघर में रक्खा हुआ है। इसमें चौहानोंको सूर्यवंशी लिखा है । ग्वालियर के तँवरवंशी राजा वीरमके कृपापात्र नयचन्द्रसूरिने ( १ ) Chronicals of the Fathan Kings of Delhi. १५ २२५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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