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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान-वंश। १५४३) के करीब लिखा गया था । परन्तु इसमें ऐतिहासिक सत्य बहुत ही थोड़ा है। __ अजमेरका चौहानराजा अर्णोराज बड़ा प्रतापी था। उसीके नामके अपभ्रंश 'अनल' के आधारपर उसके वंशज अनलोत कहलाने लगे होंगे और इसीसे पृथ्वीराजरासा नामक काव्यके कर्ताने उन्हें अग्निवंशी समझ लिया होगा । तथा जिस प्रकार अपनेको अग्निवंशी माननेवाले परमार वशिष्ठगोत्री समझे जाते हैं उसी प्रकार इनको भी अग्निवंशी मानकर वशिष्ठगोत्री लिख दिया होगा। राज्य । चौहानोंका राज्य पहले पहल अहिच्छत्रपुरमें था । उस समय यह देश उत्तरी पांचाल देशकी राजधानी समझा जाता था । बरेलीसे २० मील पश्चिमकी तरफ रामनगरके पास अबतक इसके भग्नावशेष विद्यमान हैं। वि० सं० ६९७ ( ई० स० ६४० ) के करीब प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएन्त्संग इस नगरमें रहा था। उसने लिखा है:___“ अहिच्छत्रपुरका राज्य करीब ३००० लीके घेरेमें हैं । इस नगरमें बौद्धोंके १० संघाराम हैं । इनमें १००० भिक्षु रहते हैं । यहाँ पर विधमियों ( ब्राह्मणों ) के भी ९ मन्दिर हैं। इनमें भी ३०० पुजारी रहते हैं। यहाँके निवासी सत्यप्रिय और अच्छे स्वभावके हैं । इस नगरके बाहर एक तालाव है । इसका नाम नागसर है।" ___ उपर्युक्त अहिच्छत्रपुरसे ही ये लोग शाकम्भरी ( सांभर-मारवाड़ ) में आये और इस नगरको उन्होंने अपनी राजधानी बनाया । इसीसे इनकी उपाधि शाकम्भरीश्वर हो गई । यहाँ पर इनके अधीनका सब देश उस (१) पाँच लीका एक मील होता था। ૨૭ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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