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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश सत्रहवें सर्गमें-विद्याधर-सैन्यसहित नवसाहसाङ्कका वज्रांकुशके साथ युद्ध-वर्णन; राजाके द्वारा वज्रांकुशका मारा जाना; उसकी जगह रत्नावतीका राज्य नागकुमार रनचूड़को देना और सुवर्ण-कमल लेकर भोगवती नगरीमें जाना वर्णित है। अठारहवें सर्गमें-राजाका नागराजसे मिलना; हाटकेश्वर महादेवके दर्शन करना; मृगका शापसे मुक्त होकर पुरुषरूप होना और अपनेको परमार श्रीहर्षदेवका द्वारपाल बताना; राजाका शशि-प्रभाके साथ विवाह; नागराजका राजाको एक स्फटिकशिवलिङ्ग देना; राजाका अपने नगरको लौटना; उज्जयिनीमें महाकालेश्वरके दर्शन करना; धारा नगरीमें जाकर नागराजके दिये हुए शिवलिङ्गका स्थापन करना; विद्याधर आदिकोंका जाना और राजाका राज्य-भार अपने हाथमें लेना वर्णित है। इस कथामें सत्य और असत्यका निर्णय करना बहुत ही कठिन है। परन्तु जहाँ तक अनुमान किया जा सकता है यह नागकन्या नागवंशी क्षत्रियोंकी कन्या थी। ये क्षत्रिय पूर्व समयमें राजपूताना और मध्यभारतमें रहते थे। यह घटना भी हुशंगाबादके निकटकी प्रतीत होती है । इससे सम्बन्ध रखनेवाले विद्याधर, नाग और राक्षस आदि विन्ध्यपर्वतनिवासी क्षत्रिय तथा अन्य पहाड़ी लोग अनुमान किये जा सकते हैं । नागनगरसे नागपुरका भी बोध हो सकता है । डाक्टर बूलरके मतानुसार नवसाहसाङ्कचरितका रचना-काल १००५ ईसवी और भोजके गद्दी पर बैठनेका समय १०१० ईसवी है। बल्लाल पण्डितने अपने भोजप्रबन्धमें लिखा है कि सिन्धुराजके मरनेके समय भोज पाँच वर्षका था। इससे सिन्धुराजने अपने छोटे भाई मुंजको राज्य देकर, भोजको उसकी गोदमें रख दिया । परन्तु यह लेख किसी प्रकार विश्वासयोग्य नहीं । क्योंकि सिन्धुराज मुञ्जका छोटा भाई था। ११० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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