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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार। गुफा द्वारा एक महलमें पहुँचना और पिंजरेमें लटकते हुए तोते द्वारा रूपवती स्त्रीके वेशमें नर्मदाको पहचान कर उससे मिलना वर्णित है। नवे सर्गमें-राजाने नर्मदासे यह सुना कि रत्नावती नगरी यहाँसे १०० कोस दूर है । वज्रांकुश वहाँका स्वामी है । उसके महलके पासके तालाबसे सुवर्ण-कमल लाकर जो कोई शशिप्रभाके कानोंमें पहनावेगा उसीको नागराज अपनी कन्या देगा । इस पर राजाने वंकु मुनिके पास जाकर उनसे सहायता माँगी। दसवें सर्गमें---मन्त्रीका राजाको समझाना; राजाका रत्नचूड नामक नागकुमार द्वारा, जो शापसे तोता हो गया था, शशिप्रभाको सन्देश भेजना और नागकुमारका शापसे छूटना लिखा है। ___ ग्यारहवें सर्गमें-राजाका वंकु मुनिके आश्रममें जाना, रामाङ्गद द्वारा परमारोंकी उपत्तिका वर्णन और उनकी वंशावली है। बारहवें सर्गमें-स्वप्नमें राजाका शशिप्रभासे मिलना वर्णित है । तेरहवें सर्गमें-राजाका वंकु मुनिसे बातचीत करना; विद्याधरराजके लड़के शशिखण्डको शापसे छुड़ाना; विद्याधरोंकी सेनाकी सहायता पाना और राजाका वज्रांकुश पर चढ़ाई करना लिखा है। ___ चौदहवें सर्गमें -राजाका विद्याधर-सैन्यसहित आकाश मार्गसे रवाना होता; रमाङ्गदका वन आदिकी शोभा वर्णन करना और पाताल-गङ्गाके. तीर पर सेनासहित निवास करना वर्णित है । पन्दरवें सर्गमें-पाताल-गङ्गामें जलक्रीडाका वर्णन है । सोलहवें सर्गमें-शशिप्रभाका पत्र लेकर राजाके पास पाटलाका आना; राजाका उत्तर देना; रत्नचूड़का मिलना; रमाङ्गदको वज्रांकुशके पास सुवर्ण-कमल माँगने भेजना; उसका इनकार करना; रमाइन्दका वापस आना और युद्धकी तैयारी करना है। १०९ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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