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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार। भोजके बालक होने के कारण ही वह राज्यासन पर बैठा था। यह सिद्ध हो चुका है। ___ इसीके समयमें अणहिलवाड़ाके चालुक्य चामुण्डराजने अपने पुत्रको राज्य देकर तीर्थयात्राका इरादा किया था और मालवेमें पहुंचने पर राज्यचिह्न छीननेकी घटना हुई थी । उसके बाद बल्लभराजने अपने पिताके आज्ञानुसार सिन्धुराज पर चढ़ाई की थी । परन्तु मार्गमें चेचककी बीमारीसे वह मर गया। इस चढ़ाईका जिक्र बडनगरकी प्रशस्तिमें है' । प्रबन्धकारोंसे भी इस आपसकी लड़ाई ( ९९७-१०१० ईसवी) का पता लगता है, जो सिन्धुराज तथा चालुक्य चामुण्डराज और बल्लभराजके साथ हुई थी। इसके जीते हुए देशोंमेंसे कोशल और दक्षिण कोशल (मध्यप्रान्त और बराड़का कुछ भाग ) होना चाहिए, क्योंकि वे मालवेके निकट थे। इसी तरह वागड़देश राजपूतानेका वागड़ होना चाहिए, न कि कच्छका। यह वागड़ अधिकतर दूंगरपुरके अन्तर्गत है; उसका कुछ भाग बाँसवाड़ेमें भी है। यद्यपि मुरल अर्थात् दक्षिणका केरल देश मालवेसे बहुत दूर है तथापि सम्भव है कि सिन्धुराजने मुञ्जका बदला लेनेके लिए चालुक्य-राज्य पर चढ़ाई की हो और केरल तक अपना दखल कर लिया हो। इसके बाद भोजने भी तो उस पर चढ़ाई की थी। यह राजा शैव मालूम होता है । इसके मन्त्री रमानन्दका दूसरा नाम यशोमट था । ९-भोज । इस वंशमें भोज सबसे प्रतापी राजा हुआ । भारतके प्राचीन इतिहासमें सिवा विक्रमादित्यके इतनी प्रसिद्धि किसी राजाने नहीं प्राप्त की। (१) Ep. Ind. i., 293. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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