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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मालवेके परमार ।' दुर्लभराजने वि० सं० १०६६ से १०७८ तक राज्य किया था । अतएव गुजरातका राजा चामुण्डराजका अपमान करनेवाला मालवेका राजा मुख नहीं, किन्तु उसका उत्तराधिकारी होना चाहिए । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुखका प्रधान मन्त्री रुद्रादित्य था । यह उसके लेखसे पाया जाता है । जान पड़ता है कि मुखको मकान तालाब आदि बनवाने का भी शौक था । धारके पासका मुखसागर और माँडूके जहाज महल के पासका मुख तालाब आदि इसके बनाये हुए खयाल किये जाते हैं । अब हम मुञ्जकी सभा के प्रसिद्ध प्रसिद्ध ग्रन्थकर्त्ताओंका उल्लेख करते हैं । इससे उनकी आपसकी समकालीनताका भी निश्चय हो जायगा ॥. ८ धनपाल । यह कवि काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण देवर्षिका पौत्र और सर्वदेवका पुत्र था । सर्वदेव विशाला ( उज्जेन ) में रहता था । वह अच्छा विद्वान् था और जैनोंसे उसका विशेष समागम रहा । धनपालका छोटा भाई जैन हो गया था । परन्तु धनपालको जैनोंसे घृणा थी । इसीसे वह उज्जेन छोड़कर धारानगरी में जा रहा । वहाँ उसने वि० सं० १०२९ में अमरकोषके ढँगपर पाइयलच्छी - नाममाला ' ( प्राकृत - लक्ष्मी ) नामका प्राकृत कोष अपनी छोटी बहन सुन्दरी ( अवन्तिसुन्दरी ) के लिए बनाया । उसकी बहन भी विदुषी थी; उसकी बनाई प्राकृत-कविता अलङ्कार - शास्त्र के ग्रन्थों और कोषोंकी टीकाओं में मिलती है । धनपालने राजा मोजकी आज्ञासे तिलकमञ्जरी नामका गद्यकाव्य रचा । मुखने उसको सरस्वतीकी उपाधि दी थी । इन दो पुस्तकोंके सिवा एक संस्कृत कोष भी उसने बनाया था। परन्तु वह अब तक नहीं मिला । ( १ ) Ind. Ant., Vol. XIV, p. 160. १०३ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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