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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश ग्रन्थसे पाया जाता है । वह वि० सं० १०५०, पौष-सुदि ५ ( ९९४ ईसवी ) को समाप्त हुआ था। विक्रम संवत् १०५७ ( १००० ईसवी) के एक लेखसे यादव-राजा भिल्लम दूसरेके द्वारा मुअका परास्त होना प्रकट होता है। तैलपका देहान्त वि० सं० १०५४ (९९७ ईसवी) में हुआ था। इससे मुञ्जका देहान्त वि० सं० १०५१ ( ९९४ ईसवी ) और वि.. सं० १०५४ (९९७ ईसवी) के बीच किसी समय हुआ होगा । प्रबन्धचिन्तामणिका कर्ता लिखता है कि गुजरातका राजा दुर्लभराज वि० सं० १०७७ जेठ सुदि १२ को, अपने भतीजे भीमको राजगद्दी पर बिठा कर, तीर्थसेवाकी इच्छासे, बनारसके लिए चला। मालवे में पहुंचने पर वहाँके राजा मुञ्जने उसे कहला भेजा कि या तो तुमको छत्र, चामर आदि राजचिह्न छोड़ कर भिक्षुकके वेशमें जाना होगा या मुञ्जसे लड़ना पड़ेगा । दुर्लभराजने यह सुन कर धर्मकार्यमें विघ्न होता देख भिक्षुकके. वेशमें प्रस्थान किया और सारा हाल भीमको लिख भेजा।। ट्याश्रयकाव्यका टीकाकार लिखता है कि चामुण्डराज बड़ा विषयी था । इससे उसकी बहिन वाविणी (चाचिणी ) देवीने उसको राज्यसे दूर करके उसके पुत्र वल्लभराजको गद्दीपर बिठा दिया । इसीसे विरक्त होकर चामुण्डराज काशी जा रहा था । ऐसे समय मार्गमें उसको मालवाके लोगोंने लूट लिया । इससे वह बहुत क्रुद्ध हुआ और पीछे लौट कर उसने वल्लभराजको मालवेके राजाको दण्ड देनेकी आज्ञा दी। इन दोनों घटनाओंका अभिप्राय एक ही घटनासे है, परन्तु न तो चामुण्डराजहीके समयमें मुञ्जकी स्थिति होती है और न दुर्लभराजहीके समयमें । क्योंकि मुञ्जका देहान्त वि० सं० १०५१ और १०५४ के बीच हुआ था । पर चामुण्डराजने वि० सं० १०५३ से १०६६ तक और (१) Ep. Ind., Vol. ii., p. 217. १०२ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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