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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश कुमारपालका सामन्त परमार विक्रमसिंह राज्य करता था । यह भी अपने मालिक कुमारपालकी सेनाके साथ था। जिनमण्डन अपने कुमारपालप्रबन्धमें लिखता है कि विक्रमसिंह लड़ाईके समय अर्णोराजसे मिल गया था । इसलिए उसको कुमारपालने कैद कर लिया और आबूका राज्य उसके भतीजे यशोधवलको दे दिया । अतः आबू पर विक्रमसिंहका राज्य करना सिद्ध है । उसका नाम पूर्वोक्त दोनों लेखोंसे भी प्राचीन बाश्रयकाव्यमें मौजूद है। १३-यशोधवल । यह विक्रमसिंहका भतीजा था । उसके कैद किये जानेके बाद यह गद्दी पर बैठा । कुमारपालके शत्रु मालवेके राजा बल्लालको इसने मारा । यह बात पूर्वोक्त वस्तुपाल-तेजपालके लेखसे और अचलेश्वरके लेखसे भी प्रकट होती है। इसकी रानीका नाम सौभाग्यदेवी था । यह चौलुक्यवंशकी थी। इसके दो पुत्र थे--धारावर्ष और प्रह्लाददेव । विक्रम संवत् १२०२ (ईसवी सन ११४६) का, इसके राज्य-समयका, एक शिलालेख अजारी गाँवसे मिला है। उसमें लिखा है: प्रमारवंशोद्भवमहामण्डलेश्वरश्रीयशोधवलराज्ये इससे उस समयमें इसका राज्य होना सिद्ध है । (१) तस्मान्मही विदितान्यकलत्रयात्र स्पर्शो यशोधवल इत्यवलम्बते स्म । यो गुर्जरक्षितिपतिप्रतिपक्षमाजौ बल्लालमालभत मालवमेदिनीन्द्रम् ॥ १५ ॥ (-अचलेश्वरके मन्दिरका लेख) यश्चौलुक्यकुमारपालनृपतिप्रत्यर्थितामागतं गत्वा सत्वरमेव मालवपतिं बल्लालमालब्धवान् ॥ ३५॥ (-वस्तुपालके जैन-मन्दिरकी, विक्रम संवत् १२८७ की, प्रशस्ति ) ७६ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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