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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमार-चंश। विक्रम संवत् १२२० का धारावर्षका एक शिलालेख कायद्रा गाँव (सिरोही इलाके ) के बाहर, काशी-विश्वेश्वरके मन्दिरमें, मिला है। अतः यशोधवलका देहान्त उक्त संवत्के पूर्व ही हुआ होगा । १४-धारावर्ष। यह यशोधवलका ज्येष्ठ पुत्र था । यही उसका उत्तराधिकारी हुआ। यह राजा बड़ा ही वीर था। इसकी वीरताके स्मारक अबतक भी आबूके आसपासके गाँवोंमें मौजूद हैं । यहाँ यह धार-परमार नामसे प्रसिद्ध है। पूर्वोक्त वस्तुपाल-तेजपालकी प्रशस्तिके छत्तीसवें श्लोकमें इसकी वीरताका इस तरह वर्णन किया गया है: शत्रुश्रेणीगलविदलनोनिद्रनिस्त्रिंशधारो धारावर्षः समजनि सुतस्तस्य विश्वप्रशस्यः । क्रोधाक्रान्तप्रधनवसुधा निश्चले यत्र जाता श्चोतन्नेत्रोत्पलजलकणः कोंकणाधीशपल्यः ॥ ३६ ॥ __ अर्थात्-यशोधवलके बड़ा ही वीर और प्रतापी धारावर्ष नामक पुत्र हुआ । उसके भयसे कोंकण देशके राजाकी रानियोंके आँसू गिरे । __कोंकणके शिलारवंशी राजा मल्लिकार्जुन पर कुमारपालने फौज भेजी थी। परन्तु पहली बार उसको हार कर लौटना पड़ा। परन्तु दूसरी बारकी चढ़ाईमें मल्लिकार्जुन मारा गया । सम्भव है, इस चढाईमें धारावर्ष भी गुजरातकी सेनाके साथ रहा हो। ___ अपने स्वामी गुजरातके राजाओंके सहायतार्थ धारावर्ष मुसलमानोंसे भी लड़ा था। यद्यपि इसका वर्णन संस्कृतलेखोंमें नहीं है, तथापि फ़ारसी तवारीखोंसे इसका पता लगता है। ताजुल-मआसिरमें लिखा है: हिजरी सन् ५९३ (विक्रम-सवत् १२५४ ई०सन् ११९७ ) के सफ़र महीनेमें नहवाले ( अनहिलवाड़े ) के राजा पर खुसरो (कुतबुद्दीन ऐबक) ने चढ़ाई की। जिस समय वह पाली और नाडोलके पास आया उस समय यहाँके For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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