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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमार-वंश । १०-ध्रुवभट। यह किसका पुत्र था, इस बातका अबतक निश्चय नहीं हुआ। वस्तुपाल-तेजपालके मन्दिरकी विक्रम संवत् १२८७ की प्रशस्तिके चौंतीसवें श्लोकके पूर्वार्द्धमें लिखा है: धन्धुकध्रुवभटादयस्ततस्तेरिपुद्वयघटाजितोऽभवन् । अर्थात्-धूमराजके वंशमें धन्धुक और ध्रुवभट आदि वीर उत्पन्न हुए। यही बात एक दूसरे खण्ड-शिलालेखसे भी प्रकट होती है । यह खण्ड-लेख आबूके अचलेश्वरके मन्दिरमें अष्टोत्तरशतलिङ्गके नीचे लगा हुआ है। इसमें वस्तुपाल-तेजपालके वंशका वृत्तान्त होनेसे अनुमान होता है कि यह उन्हींका खुदवाया हुआ है । इसके तेरहवें श्लोकमें लिखा है: __ अपरेऽपि न सन्दिग्धा धन्धून्ध्रुवभटादयः । यहाँपर इनकी पीढ़ियोंका निश्चित रूपसे पता नहीं लगता । ११-रामदेव । यह ध्रुवभटका वंशज था। यह बात वस्तुपाल-तेजपालकी प्रशस्तिके. चौंतीसवें श्लोकके उत्तरार्धसे प्रकट होती है: यत्कुलेऽजनि पुमान्मनोरमो रामदेव इति कामदेवजित् ॥ ३४ ॥ अर्थात् ध्रुवभटके वंशमें अत्यन्त सुन्दर रामदेव नामक राजा हुआ। यही बात अचलेश्वरके लेखसे भी प्रकट होती है: श्रीरामदेवनामा कामादपि सुन्दरः सोऽभूत् । १२-विक्रमसिंह । यद्यपि इस राजाका नाम वस्तुपाल-तेजपाल और अचलेश्वरकी प्रशस्तियोंमें नहीं है तथापि व्याश्रयकाव्यमें लिखा है कि जिस समय चौलुक्य राजा कुमारपालने चौहान अर्णोराज (आना) पर चढ़ाई की उस समय, अर्थात् विक्रम संवत् १२०७ ( ईसवी सन् ११५०) में, आबू पर. ७५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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