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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश तीसरा विक्रम संवत् ११०२ ( ईसवी सन १०४५) का गोड़वाड़ परगनेके भाइँद गाँवमें। ९-कृष्णराज दूसरा । यह पूर्णपालका छोटा भाई था। उसके पीछे उसके राज्यका यही उत्तराधिकारी हुआ। इसके दो शिलालेख भीनमालमें मिले हैं। पहला विक्रम संवत् १११७ ( ईसवी सन १०६१) माघसुदी ६ का और दूसरा विक्रम संवत् ११२३ ( ईसवी सन् १०६६) ज्येष्ठ वदी १२ का । इनमें यह महाराजाधिराज लिखा गया है । विक्रम संवत् १३१९ (ईसवी सन १२६२) के चाहमान चाचिगदेवके झूधामातावाले लेखमें यह भूमिपति कहा गया है । इससे मालूम होता है कि पूर्णपालके बाद उसका छोटा भाई कृष्णराज वसन्तगढ़, भीनमाल और किराडूका स्वामी हुआ । इसे शायद भीमने कैद कर लिया था । चाचिगदेवके पूर्वोक्त लेखका अठारहवाँ श्लोक यह है:--- जज्ञे भूभृत्तदनु तनयस्तस्य बालप्रसादो भीमक्ष्माभृच्चरणयुगलीमर्दनव्याजतो यः। कुर्वन्पीडामतिबलतया मोचयामास कारा गाराद्भूमीपतिमपि तथा कृष्णदेवाभिधानम् ॥ अर्थात्-बालप्रसादने भीमदेवके चरण पकड़नेके बहाने उसके पैर इतने जोरसे दबाये कि उसे बड़ी तकलीफ होने लगी । उसने अपने पैर तब छुड़ा पाये जब बदले में राजा कृष्णराजको कैदसे छोड़ना स्वीकार किया। किराडूके शिलालेखमें पूर्णपालका नाम नहीं है । उसकी जगह उसके छोटे भाई कृष्णराजहीका नाम है । अतः अनुमान होता है कि कृष्णराजसे किराडूकी दूसरी शाखा चली होगी । (1) EP. Ind. vol, IX, P, 70, ७४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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