SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि - नाश हो जाता है । इसे ५ मास तक सेवन कर- सफेद कनेरकी कोंपलोंको मल कर रस निनेसे काम शक्ति बढ़ती है और ६ मास तक सेवन काल कर आंखमें डालनेसे तुरन्तकी दुखने आई करनेसे पलित ( बालोंका श्वेत होना ) रोग नष्ट हुई आंखको आराम हो जाता है। हो जाता है । यदि सात मास तक यह औषध (५७३७) श्वेतगिरिकांदियोगः सेवन की जाय तो शरीर कान्तिमान हो जाता है; (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) आठ मासमें बल बढ़ जाता है । ९ मास तक श्वेताद्रिकाः सेवन करने वाला मनुष्य १०० वर्ष तक जीवित सपुनर्नवाया रहता है । इसे निरन्तर १० मास सेवन करनेसे मूलैः मुपिष्टैर्यवचूर्णयुक्तैः। विलोचनं पूरितमम्बुयुक्तैमनुष्यका स्वर अति श्रेष्ठ हो जाता है। ११ मासमें शरीरका बल अत्यधिक बढ़ जाता है और विमुच्यते पुष्पकृतोपसर्गात् ।। पूरे १ वर्ष तक सेवन करने वाला तो अदृश्य हो सफेद कोयलकी जड़, पुनर्नवा (बिसखपरे)की जाता है (१) जड़ और जौके चूर्णको पानीके साथ बारीक पीस १ वर्ष तक इसे सेवन करनेके पश्चात् इच्छा कर कपड़ेसे छान लें। नुसार आहार विहार किया जा सकता है। इसे इसे आंखमें डालनेसे फूली नष्ट होती है । सेवन करते रहनेसे मनुष्य समस्त पीड़ाओंसे मुक्त (७७३८) श्वेतापराजितामूलयोगः हो कर कल्प पर्यन्त जीवित रहता है तथा उसे ___ (रा. मा. । मुखरोगो. ६) कभी वृद्धावस्था नहीं आती। पुष्ये गृहीतं गिरिकणिकाया इसे सेवन करने वाले मनुष्यको आठों सि मूल सिताया गलके निबद्धम् । द्रियां प्राप्त हो जाती हैं। गव्येन लीढं यदि वा घृतेन (७७३६) श्वेतकरवीररस-योगः । निहन्ति घोरामपचीं तदेव ॥ ( रा. मा. । अ. ३) सफेद कोयलकी जड़को गलेगें बांधने तथा श्वेत करवीराकसलयविच्छेदरसेन पूरिताक्षस्य । गोघृतमें मिला कर चाटनेसे घोर अपची भी नष्ट तत्कालसमुत्पनो नयनप्रकोपः शमं याति ॥ । हो जाती है। इति शकारादिमिश्रमकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy