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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६४ हिममधुक मधूकसेव्यगर्भे www.kobatirth.org कल्क - हींग, नीमके पत्ते, समन्दरझाग और सफेद विष ( दुधिया वछनाग ) समान भाग मिलित १० तोले लेकर पानी के साथ पीस लें 1 १ सेर सरसों के तेलमें यह कल्क और ४ सेर गोमूत्र मिला कर पकावें । जब मूत्र जल जाय तो तेल को छान लें I इसे कान में भरने से मनुष्य, हाथी और घोड़े के कर्णरोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं तथा शिरमें लगाने से शिरके रोग नष्ट होते हैं । (९३५०) कर्पूरतैलम् ( वै. म. र. । पटल १६ ) भारत - भैषज्य - रत्नाकरः जगलवारससाधितं तिलोत्थम् । शिरसि रुजमपाकरोति कण्डूं कचशतनं च करोति हस्तकेशम् ॥ कल्क -- कपूर, मुलैठी, महुवा और खस इनका चूर्ण २॥ -२ ॥ तोले लेकर पानी के साथ पीस लें । नागवेल (पान) के ४ मेर रसमें यह कल्क और १ सेर तिलका तेल मिलाकर पकायें। जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें। इस तेलकी मालिश से शिरपोड़ा और शिरकी खाज का नाश होता तथा बालोंका गिरना बन्द हो जाता है ( कपूर को तेल छाननेके पश्चात् मिलाना चाहिये ।) (९३५१) कर्पूरादितैलम् ( वै. म. र. । पट. १६ ) कुष्ठोद्भवं व्रणमपोहति शीघ्रमेव कर्पूरतैलमसकृत् पिचुना निषिक्तम् । [ ककारादि सारुष्करं तिलमहर्मुखभक्षितं च भक्तिर्यथा तिमिरवैरिपदार्पिता तम् ॥ रुई से कपूरका तेल लगाने से तथा प्रातः काल शुद्ध भिलावा और तिल मिला कर खाने से एवं सूर्यकी भक्ति करनेसे ( सूर्य किरणों में बैठने से ) कुष्ठवण नष्ट हो जाते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९३५२) कर्पूराद्यं तैलम् (ग. नि. । तैला. २ ) कर्पूरचन्दनवचासुरदारुमूर्वा गन्धर्वमूलरजनीद्वय सिन्धु जातैः । मेदात्रिकटु पुष्करमूलकुष्ठरास्नाच्या सुहरितालककुङ्कमैश्च ॥ पथ्याक्षका स्थितगरागरुसारमेष शृङ्गजटायुतैः खलु कल्कितैश्च । गोदुग्धयुक् कटुकतैलमिदं विपक् ख्यातं निहन्ति सहसा विविधा रुजश्च ॥ कल्क -- कपूर, सफेद चन्दन, बच, देवदारु, मूवो, अरण्डमूल, हल्दी दारूहल्दी, सेंधानमक, मेदा, महामेदा, सोंठ, मिर्च, पीपल, पोहकरमूल, कूठ, रास्ना, हरिताल, केसर; हर्रकी गुठलीकी माँगी, बहेड़ेकी मोंगी, तगर, काला अगर, मेढासिंगी और जटामांसी; इनका समान भाग मिलित चूर्ण २० तोले ले कर पानी के साथ पीस लें । २ सेर सरसों के तेल में यह कल्क और ८ सेर गोदुग्ध मिला कर पकावें । जब दूध जल जाय तो तेल को छान लें। For Private And Personal Use Only यह तैल विविध प्रकारकी पीड़ाओं को तुरन्त कर देता है ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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