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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलमकरणम् ] परिशिष्ट ५४३ कल्क और ४ सेर पानी मिला कर पकावें । जब | कटकटाना छोड़ देता है। पानी जल जाए तो तेल को छान लें। (कल्क १० तोले, तेल १ सेर, दूध ४ सेर) यह तैल नासार्श को नष्ट करता है। (९३४८) कर्कोटका तैलम् (९३४६) करवीराचं तैलम् (२) । (धन्व. व्रणा.) (पृ. यो. त. । त. १४३; शा. ध. । ख. २ अ. | वन्ध्याकर्कोटकी पाठा व्याघ्री कुष्ठपटोलिका । ९; वं. से. । स्त्री.) अकोटहस्तिपर्णी च तालगन्धकसैन्धवम् ।। करवीरशिफादन्ती चित्रको धातकीति च । | मभिष्ठाकरवीरं च निशा हिङ्गु सुवर्चला । रम्भाक्षारोदके तैलं प्रशस्तं लोमशातनम् ॥ वचासिन्दरतल्यांशं जलेन सह पेषयेत् ।। ____कल्क---कनेरकी जड़, दन्तीमूल, और धाय लामो के फूल समान भाग मिलित १० तोले ले कर | पचेत्तैलावशेषं च लेपाक्षुष्टत्रणापहम् ॥ पानीके साथ पीस लें। १ सेर तैलमें यह कल्क और ४ सेर केलेका ___ कल्क-बांझ ककोड़ेकी जड़, पाठा, कटेली, क्षारजल मिलाकर पकावें जब पानी जल जाय तो कूठ, पटोल, अंकोल, हस्तिपर्णी ( मूर्वा ), हरताल, गंधक, सेंधा नमक, मजीठ, कनेर, हल्दी, हींग, तेल को छान लें। सुवर्चला ( हुलहुल ), बच और सिन्दूर समान इसे लगाने से बाल गिर जाते हैं। भाग मिलित २० तोले लेकर पानी के साथ (९३४७) कर्कटकादितैलम् पीस लें। (वृ. मा. । बालरोगा.) २ सेर तेल में यह कल्क और ८ सेर पानी पिष्ट्वा कर्कटकं तैलं सक्षीरं साधितं तु तत् । मिला कर पानी जलने तक पकायें। पादाभ्यङ्गेन बालस्य दन्तध्वनिनिवारणम् ॥ इसे लगानेसे दुष्ट व्रण नष्ट होते हैं। काकडासिंगी के कल्क और दूधके साथ सिद्ध तैल बालकके पैरोंमें लगाने से बह नोंदमें दांत __(९३४९) कर्णामृततैलम् १ शा. घ. में धायके फूलोंकी जगह निसोत ! ___ (र. सं. क । उ. ५; यो. त. । त. ७०) और कड़वी तोरी है। तथा बंगसेनमें तीन प्रकारकी रामठं निम्बपत्राणि फेनः सागरसम्भवः । तोरी लिखी है एतानि समभागानि तद्वद्देयं सितं विषम् ।। करवीरशिखादन्ती त्रिवृत्कोशातकीफलम् । गोमूत्रेण समायुक्तं कटुतैलं विपाचितम् । (शा. ध.) । तेनैव पूरयेत्कणे नरकुअरवाजिनाम् ॥ करवीरशिखादन्ती त्रीणि कोशातकानि च । कर्णरोगं निहन्त्याशु लेपनाच्छिरसो गदान् । (वं से.) ' नाम्ना कर्णामृतं तैलं ब्रह्मणा निर्मितं स्वयम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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