SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उकारादि-आसव (१६९) ___धतूरे के बीजों के कल्क और मानकन्द के श्वदंष्ट्राशतपुष्पा च वाटयालकमधूरिके। क्षारोदक (क्षार के पानी के साथ) कड़वे तेल को | एतैःकर्षमितैर्मागैस्तैलप्रस्थं विपाचयेत् ।। सिद्ध करें । यह तैल विपादिका (पैरों की बिवाई) सपत्रफलमूलस्य गोक्षुरस्य पलं शतम् । का अत्यन्त शीघ्र माश करता है। जलद्रोणे विपक्तव्यं पादांशेनावतारयेत् ॥ [४९९] उपोदिकादि तैलम् तकं तैलसमं देयं वीरणक्काथकाढकम् । ___ (यो. र., भै. र., वृं. मा; क्षु. रो.) मूत्राधातं मूत्रकृच्छ्रमश्मरी हन्ति दारुणम् ॥ उपोदिकासर्षपनिम्बमोच बलवणकरं वृष्यं वातपित्तनिषदनम् । उशीराद्यमिदं तैलं काशिराजेन निर्मितम् ।। कारुभस्मतोयः। तैलं विपक्कं लवणेन युक्तं ___ कल्कद्रव्य-खस, तगर, कूठ, मुल्हठी, चन्दन, | बहेड़ा, हैड़, कटेली (या शतावर) कमल, नीलोफर, तत्पाददारी विनिहन्ति सघः॥ शारिवा, खरैटी, असगन्ध, दशमूल, शतावर, विदारी पौदीना, सरसों, नीम, केलेका फूल और | कन्द, काकोली, गिलोय, गंगेरन, गोखरू, सोया, सैन्धव इनके कल्क तथा लघु कुम्हेड़ेके क्षारोदकके साथ सिद्ध किया हुवा तैल पाददारी (बिवाई)का पीले फूलवाला बला (खरैटी) सौंफ ११-१। तोला । प्रथम पत्र फल मूल सहित गोखरू ६। सेर लेकर नाश करता है। ३२ सेर पानीमें पकावें जब चौथा भाग शेष रह [५००] उशीराचं तैलम् (भै. र. । मूत्रा.) जाय तो उतारकर छानलें । उपरोक्त कल्क, इस उशीरं तगरं कुष्ठं यष्टीमधुकचन्दनम् । क्वाथ और ८ सेर खसके क्वाथ तथा २ सेर विभीतक्यभयाभीरुः पद्ममुत्पलशारिये ॥ तक्र के साथ २ सेर तैल सिद्ध करें । यह तैल बलातुरंगगन्धा च दशमूलं शतावरी। मूत्राघात, मूत्रकृच्छ, दुस्साध्य पथरी और वातपित्त विदारीचैव काकोली गुडून्यतिबला तथा ॥ | नाशक तथा बलवर्द्धक, कान्तिकारक और वृष्य है। अथ उकारायासवप्रकरणम् [५०१] उशीरासवः (भै. र. । र. पि) । शर्करायास्तुलां दत्वा क्षौद्रस्यार्द्ध तुला तथा ॥ उशीरं बालकं पद्म काश्मीरं नीलमत्पलं । मासं संस्थापयेद्भाण्ड मांसीमरिचधूपिते । प्रियङ्ग पद्मकं लोधं मञ्जिष्ठा धन्वायसकम् ॥ | उशीरासव इत्येष रक्तपित्तविनाशनः ।। पाठां किराततिक्तश्च न्यग्रोधोदुम्बरं शटीम्। पांडुकुष्ठप्रमेहाशः कृमिशोथहरस्तथा ॥ पर्पटं पुण्डरीकश्च पटोलं काशनारकम् ॥ खस, सुगन्धबाला, कमल, खम्भारी, नीलोफर, जम्बूशाल्मलिनि-सं प्रत्येकं पलसंमितम् । फूलप्रियंगु, पनाक, लोध, मजीठ, धमासा, पाठा, सर्व सुचूर्णितं कृत्वा द्राक्षायाः पलविंशतिम् ॥ चिरायता, बड़, गूलर, कचूर, पित्तपापड़ा, श्वेत धातकी षोडशपला जलद्रोणदये क्षिपेत् । ! कमल, पटोलपत्र, कचनार, जामन की छाल, For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy