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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६८) भारत-भैषज्य रत्नाकर अथ उकारादि लेहप्रकरणम् । [४९४] उतुम्बरादिलेहः (वृ. नि. र; र. पि.) गूलर और खम्भारी के पक्के फल, हैड़, पक्कोदुम्बरकाश्मर्यपध्याखजूरगोस्तनीः। खजूर और मुनक्का इन्हें पृथक् २ शहद में मिलामधुना प्रन्ति संलीहा रक्तपिस पृथक् पृथक् ॥ कर चाटने से रक्तपित्त का नाश होता है । ___ अथ उकारादि घृतप्रकरणम् [४९५] उन्मादनाशक घृतम् । हींग, सोंचल नमक और त्रिकुटा १०-१० (च. सं. चि, अ. १४) तोला, घी ८ सेर गोमूत्र ३२ सेर लेकर यथा विधि हिगुसौवर्चलाव्योपैपिलाशैघृताटकम् । सिद्ध करें । चतुर्गुणे गवांमूत्रे सिद्धमुन्मादनाशनम् ॥ इसके सेवन से उन्माद का नाश होता है। अथ उकारादि तैलप्रकरणम् । [४९६] उदुम्बरादि तैलम् (१) । इस तैल का फाया योनि में रखें और (च. सं. चि. अ. ३०) | उपरोक्त उदुम्बरादि औषधियों के शीत कषाय में उदुम्बरशलाटूनां द्रोणमन्द्रोणसंयुतम् । । मिश्री मिला कर उससे अवसेचन करें (धोवें) । इस सपश्चवल्ककुलकनिम्बमालतिपल्लवम् ॥ उपाय से ७ दिन में पिच्छिला, विवृता, काल निशिस्थाप्यं जले तस्मिस्तैलप्रस्थं विपाचयेत्। दुष्टा (दीर्घकाल से विकृता) योनि शुद्ध हो जाती लाक्षाधवपलाशत्वनिर्यासै शाल्मलेन च ॥ है एवं सन्तानोत्पत्ति की शक्ति प्राप्त होती है। पिष्टैसिद्धश्च तत्तै पिचुर्योनौ निधापयेत् । [४९७] उदुम्बरादि तैलम् (२) सशर्करैः कषायैश्च शीतैः कुर्वीत सेवनम् ॥ (च. सं. चि. अ. ३०) पिच्छिलाविताकालदुष्टयोन्यथदारुणम्। उदुम्वरस्य दुग्धेन षद्कृत्वो भावितांस्तिलान् । सप्ताहात् शुद्धति क्षिप्रं अपत्यश्चापि विन्दति । तैलं क्वाथे च तस्यैव सिद्धं धार्यश्च पूर्ववत् ।। ___ सूखे हुवे कच्चे गूलर के टुकड़े १६ सेर तिलों को गूलरके दूधकी छ: भावना देकर और पंच वल्कल (बड़ पीपल, पिलखन, गूलर । उनका तेल निकला और उस तैलको नं० ४९६ और बेत की छाल) पटोलपत्र, नीमके पत्ते, चमेली के समान उदुम्बरादि के कषाय में सिद्ध करके के पत्ते । सब समान मात्रा में मिले हुवे १६ सेर | उसका उसी प्रकार उपयोग करें, तो पूर्वोक्त (नं० लेकर रातको ३२ सेर पानी में भिगो दें और | ४९६ के समान) गुण प्राप्त होते हैं । सुबहको छान लें। इस जल और लाख, धव, |४९८] उन्मत्ततैलम् (भै. र. । कुष्ट) पलाश (ढाक) की छाल और सेमलका गोंद, इनके उन्मत्तकस्य बीजेन माणकक्षारवारिणा । कल्क से २ सेर तैलका पाक सिद्ध करें। कटुतैलं विषक्तव्यं शीघ्र हन्ति विपादिकाम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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