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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७०) भारत-भैषज्य रत्नाकर सेम्भल का गोंद (मोचरस) प्रत्येक का चूर्ण ५-५ | मिट्टीके पात्र में यथा विधि सन्धान करें। फिर १ तोला, दाख १०० तोला, धाय के फूल १ सेर मास पश्चात् निकाल कर छानकर रक्खें । यह और पानी ६४ सेर, खांड ६। सेर, शहद ६। सेर। | रक्तपित्त, पाण्डु, कुष्ठ, प्रमेह, बवासीर, कृमि और सबको एकत्र करके जटामांसी और मरिचसे धूपित ' शोथ नाशक है । अथ उकारादि लेपप्रकरणम् [५०२] उपदंशलिंगलेपः (यो. र. । उप.) | त्रिफलामेव सेवेत ताम्रभस्मयुतां व्रणी ॥ रसकर्पूरगडाणं मर्दयेत्खदिराम्बुना। तद्वा तत्तलमाकपेनलीयन्त्रेण बुद्धिमान् । प्रक्षालयेद्वारिणा च शुष्के लेपस्तु वारिणा ॥ तुल्यसैन्धवपङ्केन बालुकापादपूरणात् ॥ लिंगलेपो व्रणं हन्ति त्रिदिनानात्र संशयः॥ तत्तललेपनाद्वाऽपि व्रणा गच्छन्त्यशेषताम् । ६ माशे रसकपूर को खैरके रसमें घोटकर | शुष्कप्रायेषु जातेषु वराचूर्णमवचूर्णयेत् ।। पानीसे धोयें फिर सूख जानेपर पानीमें मिलाकर । इच्छेद्भूयोऽपुनर्भावमुपदंशं यदि व्रणी। लिंगपर लेप करें। इससे ३ दिन में उपदंशके । वराकाथं भजेन्मासं गन्धकं वा समाक्षिकम् ॥ घावोंका नाश होजाता है। प्रत्यहं चित्रकक्वाथः पटुत्यागस्वतन्त्रतः।। [५०३] उपदंशस्फोटेऽवलेपः(यो. र. । उप.) लेप्यं वा ताल तैलं गान्धं वा समिश्रितम् । जातीफलविडङ्गानि रसकं देवपुष्पकम् । राल, मोम, गन्धाबिरोजा, इन तीनोंको आध समभागानि सर्वाणि नवनीतेन मर्दयेत् । आध पाव लेकर उमरूयन्त्रकी नीचेकी हांडीमें स्फोटानामुपदंशानां व्रणशोधनरोपणः ॥ | रखदे । दोनों हांडियों के मुखों को मिलाकर लोहेके जायफल, बायबिडंग, रसकपूर और लौंग । बारीक तारोंसे खूब मजबूत बांधदे जिसमें कहीं से सबको समान भाग लेकर पीसकर नवनीत (नौनी | खसकने नहीं पावे । फिर उन तारोंके बन्धनके घी) में मिलाकर लेपकरने से उपदशके घाव शुद्ध ऊपर सात कपर-मट्टी करके सुखाले । इस डमरूहोकर भर जाते हैं। यन्त्रको लिटाकर एसी युक्तिसे चूल्हेपर रखे कि [५०४] उपदंशहरो लेपः (रसा. सा.) जिसमें नीचेकी हांडीमें ही आंच लगे और ऊपरकी देवधूपमधूच्छिष्टश्रीवासान् समभागकान् । रीती हांडी चूल्हेसे दूर रहे । तब मन्दी २ आंच ढकायन्त्रे निधायाऽनुसन्धि तारैरयोमयैः॥ । लगाना शुरू करे, एक घण्टे के बाद चूल्हेसे बाहर बद्ध्वा गाढं च कुर्वीत मृत्पटान् सप्त तद्धरेत् । निकली हुई रीती (खाली) हांडीके तलभागको स्पर्श चुल्यां तिर्यग्ददीताऽनिं मन्दं हण्डी स्पृशेत्पगम् करके परीक्षा करे कि राल, मोम और गन्धाविरोज्ञात्वा स्पर्शासहं यन्त्रं शीतयेदवतार्य तत् । जेका सारभाग दूसरी हांडीमें उड़कर आया कि आज्यं तत्कर्दमोन्मानं तदद्वयं वन्हिगालितम् ॥ नहीं । जब हांड़ी ऐसी गरम होजाय कि उसमें उपदंशबणे लेप्यं क्षालयेत् त्रिफलाजलैः। हाथ नहीं लगा सके तब समझले कि उन तीनों For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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