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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरे । (१४४) [४१४] आमलकरसायनम् (४) ( च. सं. चि. अ. १ ) संवत्सरं पयोवृत्तिगवां मध्ये वसेत्सदा । [४१५] आमलक रसायनम् (५) (च. सं. चि, अ. १ ) अथामलक हरीतकी नामामलकाविभीतका संवत्सराते पौषीं वा माघीं वा फाल्गुनीं तथा । योपवासी शुद्ध प्रविश्यामलकीवनम् ॥ बृहत् फलादथमारुह्य द्रुमं शाखगतं फलम् । गृहीत्वा पाणिना तिष्टे जपन्ब्रह्मामृतागमात् । तदाह्यवश्य ममृतं वसत्यामलके क्षणम् ॥ शर्करामधुकल्पानि स्नेहवन्ति मृदनि च । भवन्त्यमृतसंयोगात्तानि यावन्ति भक्षयेत् ॥ जीवेद्वर्षसहस्राणि तावन्त्यागतयौवनः । सौहित्यमेषां गत्वा तु भवत्यमरसन्निमः । स्वयं चास्योपतिष्ठन्ति श्रीर्वेदवाक्यरूपिणी सावित्री मनसाध्यायन् ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः । नामामलकहरीतकीविभीतकानां वा पलाशत्वगवनद्धानां मृदावलिप्तानां कुकूलेस्त्रिना नामकुलकानां पलसहस्रमुदूखले संपोथ्य दधिघृतमधुपललतैलशर्करा संप्रयुक्तं मक्षयेदनन्न भुग्यथोक्तेन विधिना तस्यान्ते यवाग्वादिभिः प्रकृत्यवस्थापनमभ्यङ्गोत्सादनं सर्पिषा यवचूर्णैः अयञ्च रसायन प्रयोगप्रकर्षो द्विस्तावदग्निबलमभिसमीक्ष्यप्रतिभोजनं यूषेण पयसा वा षष्टिकः ससर्पिष्कोऽतः परं यथासुखविहारः काममक्ष्यः स्यादनेन प्रयोगेण ऋषयः पुनर्युवत्वमत्रापुः । बभूवुश्वानेकवर्षशतजीविनो निर्विकारा परं शबुद्धीन्द्रियवलसंमुदिताचे रुचात्यन्तनिष्ठन्तपः । प्रथम एक वर्ष पर्यन्त जितेन्द्रिय होकर ब्रह्मचर्य पूर्वक सावित्री का ध्यान करते हुवे केवल दुग्धाहार पर रहें । इसके पश्चात् पौष, माघ या फाल्गुन के महीने में १ दिन निराहार व्रत धारण करके पूर्णमासी के दिन आमलों के वनमें प्रवेश करें | वहां पहुंचकर बृहत्फलों से परिपूर्ण आमले के किसी वृक्षपर चढ़ जाएं और किसी शाखा के एक आमले को हाथमें लेकर उस समय तक ब्रह्मामृत मन्त्र का जाप करें जब तक कि वह आमला अमृतमय होकर शर्करा और मधुके समान मधुर एवं स्निग्ध और कोमल न हो जाय। इस - प्रकार आमले में सुधा सञ्चार होने पर उसे भक्षण है और आमले या बहेड़ा और आमले अथवा है, बहेड़ा और आमलों को ढाक की छाल में बन्द करके ऊपर से मिट्टी का लेप करके अरने उपलों की अग्नि में स्वेदन करें। फिर निकालकर गुठली दूर करदें और उसमें से ६२ ॥ सेर लेकर ओखली में कूट लें । फिर इसमें दहीं, घी, शहदऔर चीनी तथा चूर्ण तथा तिलका तेल मिलाकर विधिपूर्वक विना भोजन किये इसका सेवन करें । इसके पश्चात् यथोचित काल में प्रकृत्यनुकूल यवागु आदिका आहार करें । एवं जौके चूर्ण को घी में मिलाकर देहपर मर्दन करें । करें । इस समय जितने अमृतमय आमले खाए जाएंगे उतने ही हज़ार वर्षो की युवावस्था प्राप्त होगी । यदि इस समय पेट भरकर ऐसे आमले खाए जाएं तो मनुष्य देव तुल्य हो जाता है एवं लक्ष्मी तथा सरस्वती स्वयं उसके समीप में रहती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस समय तक इस रसायन का प्रयोग जारी रहे उस समय तक प्रत्येक भोजन में अग्निबलानुसार मूंग के यूष या दूध के साथ साठी For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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