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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकारादि-रसायन (१४५) चावलों का घृत युक्त भात खाएं और उस के जमदग्निर्भरद्वाजो भृगुरन्ये च तद्विधाः ॥ पश्चात् यथेच्छ सुखकारक आहार विहार करें। ! प्रयुज्य प्रयतामुक्ताः श्रमव्याधिजरामयात् । इस के सेवन से प्राचीनकाल में ऋषियों ने यावदिच्छन्तपस्तेषुः तत् प्रभावान् महाबलाः॥ पुनः यौवनावस्था एवं सैकड़ों वर्ष की निर्विकार तपसाब्रह्मचर्येण ध्यानेन प्रशमेन च । आयु प्राप्त की थी। तथा इस के प्रभाव से अत्यन्त रसायनविधानेन कालयुक्ते चायुषा ।। शारीरिक बल, इन्द्रियबल एवं बुद्धि प्राप्त कर के स्थिता महर्षयः पूर्व, नहि किश्चिद्रसायनम् । निष्ठा के साथ तप करते रहेथे । ग्राम्यणामन्यकार्याणां सिद्धिश्चप्रयतात्मनाम् ।। [४१६] आमलकायसरसायनम् इदं रसायनश्चक्रे ब्रह्मावर्षसहस्रिकम् । (च. सं. चि. अ. १) जराव्याधिप्रशमनं बुद्धीन्द्रियबलप्रदम् ॥ करप्रचितानां यथोक्तगुणानामामलकाना• प्रथम माध या फागुन मास में हाथ से तोड़े मुद्धृतास्थ्नां शुष्कचूर्णितानां पुनः माघे हुवे यथोक्त गुण सम्पन्न आमले लेकर उनकी फाल्गुने वा मासे त्रिःसप्तकृत्वःस्वरसपरिपी गुठलियां निकाल कर सुखा कर आमलों का चूर्ण तानां पुनः शुष्कचूर्णाकृतानामाढकमेकं ग्राहयेद करें। फिर इसको आमले के रसकी २१ भावना अथजीवनीयानां बृहणीयानां देकर सुखा कर महीन करले । इसके बाद षड् स्तन्यजननानां शुक्रवदनानां वयःस्थापनानां | विरेचन शताश्रितीयाध्यायोक्त जीवनीय, वृंहणीय, षविरेचनशताश्रितीयोक्तानामौषधानां स्तन्यजनक, शुक्रवर्द्धक और वयःस्थापक गण एवं चन्दनागुरुधवतिनिशखदिरशिंशपासन चन्दन, अगर, धव, तुन, खदिर, सीसम और पीतसाराणाश्चाणुशाश्च्छिनानां क्षिप्तानामभ शाल इन वृक्षों के सार (राछ-बीचका सारवान याविभीतकपिप्पलीवचाचव्यचित्रकवि. भाग) हैड़, बहेड़ा, पीपल, वच, चव्य, चीता और उङ्गानाश्च समस्तानामाढमेकं दशगुणना- बायविडङ्ग । सब चीजें मिलाकर ४ सेर ग्रहण करें। म्भसा साधयेत् । तस्मिन्नावकावशेषे रसे। अब इनमें से चन्दनादि के सारों को कूटकर बारीक सुपूते तान्यामलकचूर्णानि दत्वा गोमयानि- । २ टुकड़े करलें और फिर सब चीजों को ८० सेर भिवंशविदलशरतेजनाग्निभिर्वा साधयेत्। | जलमें पकावें जब ८ सेर जल शेष रह जाय तो यावदुपनयाद्रसस्य तमनुपदग्धमुपहृत्याय- नीचे उतार कर छानकर उसमें आमलों का पूर्वोक्त सीषुपात्री वास्तीर्य शोषयेत् । सुशुष्कं कः । ४ सेर चर्ण मिलाएं और फिर उसे उपलों या बांस ष्णाजिनस्योपरिदृषदिश्लक्ष्णपिष्टमयः अथवा सरकंडे की अग्नि में पकावें । जब पानी जल स्थाल्यान्निधापयेत् । तच्चूर्णमयचूर्णा- | जाय (परन्तु औषधि न जलने पावे) तो नीचे उतार ष्टभागसम्प्रयुक्तं मधुसर्पिामग्निबलम- | कर किसी लोहे के पात्र में फैला कर सुखावें । इसके भिसमीक्ष्य प्रयोजयेदिति ॥ | पश्चात् काले हरीन की चर्म पर एक पत्थर की आमलाकायस रसायनके गुण। शिला बिछाकर उसे उसपर पीसें। इसे आठवां एतद्रसायनं पूर्व वसिष्ठः कश्यपोऽङ्गिराः। ' 'भाग लोह चूर्ण और घृत तथा शहद मिला कर For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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