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१३पतके उद्देशः२ ॥११४॥
अवधिज्ञान अने अवधिदर्शनसहित तीर्थकरादि ज उद्वर्ते.] बाकीर्नु बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. सत्ताने आश्रयी पूर्वे ज कहेलं छे ते प्रमाणे व्याख्या
| सर्व कहे. परन्तु एटलो विशेष छे के त्यां संख्याता स्त्रीवेदवाळा कहेला छे. ए प्रमाणे पुरुषवेदवाळा पण कहेला छे, नपुंसकवेदवाळा प्रज्ञप्तिः ॥११४२॥ ४
| नथी. क्रोधकषाय वाळा कदाचित् होय छे अने कदाचित होता नथी. जो होय छ तो जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता होय छे, ए प्रमाणे मान अने माया संबंधे पण जाणवू. लोभकषायवाळा संख्याता कहेला . [कारण के देवगतिमां लोककपायी घणा होय छे, तेथी हमेशां ते संख्याता ज होय.] बाकी बधु पूर्व प्रमाणे जाणवू. संख्यातासंबन्धे उत्पाद, उद्वर्तना अने | सत्ताना त्रण आलापकोने विषे चार लेश्याओ कहेवी. ए प्रमाणे असंख्याता योजनविस्तारवाळा असुरकुमारावासो संबंधे पण जाणवं, परन्तु त्रणे आलापकोने विषे 'असंख्याता' पाठ कहेवो, यावत्-'असंख्याता अचरम करा' छे.
केवतिया णं भंते ! नागकुमारावास? एवं जाव थणियकुमारा, नवरं जत्थ जत्तिया भवणा॥ केवत्तिया णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, गोयमा! असंखेजा वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता, ते ण भंते ! किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा?, गोयमा! संखेजवित्थडा, नो असंखेजवित्थडा, संखेन्जसु णं भंते ! वाणमतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवतिया वाणमंतरा उवव०? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेववित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणियब्वा वाणमंतराणवि तिनि गमगा। केवतिया णं भंते ! जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णता?, गोयमा! असंखेजा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णता, ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा० १, एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणवि निन्नि गमगा भाणियचा नवरं गगा तेउलेस्सा, उक्वजंतेसु पन्नत्तेसु
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