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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir १३पतके उद्देशः२ ॥११४॥ अवधिज्ञान अने अवधिदर्शनसहित तीर्थकरादि ज उद्वर्ते.] बाकीर्नु बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. सत्ताने आश्रयी पूर्वे ज कहेलं छे ते प्रमाणे व्याख्या | सर्व कहे. परन्तु एटलो विशेष छे के त्यां संख्याता स्त्रीवेदवाळा कहेला छे. ए प्रमाणे पुरुषवेदवाळा पण कहेला छे, नपुंसकवेदवाळा प्रज्ञप्तिः ॥११४२॥ ४ | नथी. क्रोधकषाय वाळा कदाचित् होय छे अने कदाचित होता नथी. जो होय छ तो जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता होय छे, ए प्रमाणे मान अने माया संबंधे पण जाणवू. लोभकषायवाळा संख्याता कहेला . [कारण के देवगतिमां लोककपायी घणा होय छे, तेथी हमेशां ते संख्याता ज होय.] बाकी बधु पूर्व प्रमाणे जाणवू. संख्यातासंबन्धे उत्पाद, उद्वर्तना अने | सत्ताना त्रण आलापकोने विषे चार लेश्याओ कहेवी. ए प्रमाणे असंख्याता योजनविस्तारवाळा असुरकुमारावासो संबंधे पण जाणवं, परन्तु त्रणे आलापकोने विषे 'असंख्याता' पाठ कहेवो, यावत्-'असंख्याता अचरम करा' छे. केवतिया णं भंते ! नागकुमारावास? एवं जाव थणियकुमारा, नवरं जत्थ जत्तिया भवणा॥ केवत्तिया णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, गोयमा! असंखेजा वाणमंतरावाससयसहस्सा पन्नत्ता, ते ण भंते ! किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा?, गोयमा! संखेजवित्थडा, नो असंखेजवित्थडा, संखेन्जसु णं भंते ! वाणमतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवतिया वाणमंतरा उवव०? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेववित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणियब्वा वाणमंतराणवि तिनि गमगा। केवतिया णं भंते ! जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णता?, गोयमा! असंखेजा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णता, ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा० १, एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणवि निन्नि गमगा भाणियचा नवरं गगा तेउलेस्सा, उक्वजंतेसु पन्नत्तेसु REGIMENSACTICE For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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