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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रशसिः ॥११४१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एवं माण० माया• संखेखा लोभकसाई पण्णत्ता सेसं तं चैव तिसुवि गमएस संखेजेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियबाओ, एवं असंखेज्ज वित्थडेसुवि नवरं तिसुवि गमएस असंखेज्जा भाणिव्वा जाव असंसेज्जा अचरिमा पण्णत्ता । [प्र० ] हे भगवन् ! केटला प्रकारना देवो कहेला के १ [उ०] हे गौतम! चार प्रकारना देवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ मवनवासी, २ वानव्यंतर, ३ ज्योतिषिक अने ४ वैमानिक. [प्र०] हे भगवन् ! भवनवासी देवो केटला प्रकारना कहेला के ? [अ०] हे गौतम! दश प्रकारना कहेला छे, ते आ प्रमाणे- असुरकुमार- इत्यादि भेदा बीजा शतकना देवोदेशकमां कह्या प्रमाणे यावत् 'अपराजित अने सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त कहेवा. [प्र० ] हे भगवन्! असुरकुमारना केटला लाख आवासो कह्या छे ? [उ०] हे गौतम! चोसठ लाख असुरकुमारना आवासो कहेला छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते असुरकुमारना आवासो संख्याता योजनविस्तारवाळा छे के असंख्यातायोजन विस्तार वाळा छे ? [उ०] हे गौतम! संख्याता योजनविस्तारवाळा पण के अने असंख्यातयोजनविस्तारवाळा पण छे. [प्र० ] हे भगवन् ! चोसठ लाख असुरकुमारना आवासोमांना संख्यातायोजनविस्तारवाळा असुरकुमारोना आवासोमा एक समये केटला असुरकुमारो उपजे, यावत्-केटला तेजोलेश्यावाळा उत्पन्न याय, केटला कृष्णपाक्षिक जीवो उत्पन्न थाय ? ए प्रमाणे जेम रत्नप्रभा संबंधे [उ० १ प्र० ] प्रश्न कर्यो हतो, तेम अहिं प्रश्न करवो. अने ते प्रकारे उत्तर पण आपको, परन्तु एटलो विशेष छे के अहीं वे बेदो सहित उपजे, नपुंसकवेदवाळा न उपजे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवु. उद्वर्तना संबंधे पण तेज प्रमाणे जाणवु, परन्तु एटलो विशेष छे के असंज्ञी उद्वर्ते छे-च्यवे छे, [कारण के ईशान देवलोक सुधीना देवो पृथिवीकायादि असंज्ञीमां उपजे छे.] अवधिज्ञनी अने अवधिदर्शनी त्यांथी उद्वर्तता-नीकळतां नथी, [कारण के असुरकुमारादिथी नीकळेला तीर्थकरादि न थाय अने For Private And Personal १३ शतके उद्देश २ ॥११४१॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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