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व्याख्याप्राप्तिः ॥११०१॥
नेरतिए०१ पुच्छा, गोयमा! नेरतिएहिंतोवि उववजंति नो तिरिनो मणु देवेहिंतोवि उववजंति, जह नेरइएहितो उववज्जति किं रयणप्पभापुढ विनेरइएहिंतो उववजंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उबवजति ?, गोयमा !
१२शतके रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववजंति नो सक्करजाव नो अहेसत्तमापुढ विनेरहपहिंतो उवव जंति, जइ देवेहिंतो
उद्देशः९ उबवजंति किं भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जति वाणमंतर. जोइसियल वेमाणियदेवेहिंतो उववजंति?, गोयमा!
2॥११०१॥ भवणवासि देवेहिंतोवि उवबजति वाणमंतर एवं सब्ददेवेसु उववाएयब्वा वकंतीभेदेणं जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति ।
[प्र०] हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवो क्याथी आचीने उत्पन्न थाय ? शु नैरयिकोथी आवीने उत्पन्न थाय, तिर्यचोथी आवीने | 81 उत्पन्न थाय, मनुष्योथी आवीने उत्पन्न थाय, के देवोथी आवीने उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! नैरयकोथी आवी उत्पन्न थाय, तिर्यचोथी, मनुष्योथी, अने देवोथी पण आवीने उत्पन्न थाय. अहीं व्युत्क्रान्ति पदमां कह्या प्रमाणे भेद-विशेषता कहेवी, अने तेओनी सर्वने विषे उत्पत्ति कहेवी, यावत्-अनुत्तरौपपातिक सुधी कहेवु, परन्तु विशेष ए छे के, असंख्यात वर्षना आयुष्यवाळा जीवो, अकर्मभूमिना जीवो, अंतरद्वीपना जीवो अने सर्वार्थसिद्ध वर्जिने यावद्-अपराजित देवोथी आवीने उत्पन्न थाय छे. पण सर्वार्थसिद्धना देवो उत्पन्न थता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! नरदेवो क्याथी आवीने उत्पन्न थाय ?-शुं नैरयिकोथी, तिर्यचोथी, मनुयोथी के देवोथी आवीने उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! तेओ नरयिको अने देवोथी आवीने उत्पन्न थाय छे, पण तिर्यच अने मनुष्योथी आवीने उत्पन्न थता नथी. [प्र०] जो तेओ नैरयिको आवीने उत्पन्न थाय तो शुरलप्रभाना नैरयिकोथी आवीने (नरदेवो) उत्पन्न थाय के यावद्-अधःसप्तम पृथ्वीना नैरयिकोथी आवीने उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! तेओ रत्नप्रभाना नैरयि
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