SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Art व्याख्या. प्रज्ञप्तिः ॥११००॥ endra www.kobatirth.org Acharya Shri garsuri Gyanmandir द्रव्यदेव'- एम कहो छो ? (उ०) हे गौतम ! जे पंचेद्रियतियैचयोनिक के मनुष्य देवोमां उत्पन्न थवाने भव्य - योग्य छे, ते माटे ते 'भव्यद्रव्यदेव' २ कड़ेवाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी 'नरदेव' 'नरदेव' - एम कहो छो १ (उ०) हे गौतम ! जे आ राजाओ चार दिशाना अन्तना स्वामी चक्रवर्तीओ छे, जेने समस्त रत्नोमा प्रधान चक्ररत्न उत्पन्न थयुं छे एवा, नव निधिना स्वामिओ, समृद्ध भंडारवाळा, जेओनो मार्ग बत्रीसहजार राजाओवडे अनुसराय के एवा, महासागररूप उत्तम मेखलापर्यन्त पृथ्वीना पति अने मनुष्यना इंद्रो छे ते माटे 'नरदेवो' 'नरदेवो'- एम कहेवाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! शा हेतुथी 'धर्मदेव' 'धर्मदेव'- एम कहो छो ? ( उ०) हे गौतम ! जे आ अनगार भगवंतो इर्यासमितिवाळा यावद्-गुप्त ब्रह्मचारी छे, माटे ते हेतुथी 'धर्मदेव' 'धर्मदेव' एम कहेवाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! एम शा हेतुथी 'देवाधिदेव' 'देवाधिदेव' कहेवाय के १ (उ०) हे गौतम ! जे आ अरिहंत भगवंतो उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शनने धारण करनारा यावद्- सर्वदर्शी छे, ते हेतुथी यावद् 'देवाधिदेव' 'देवाधिदेव' कहेवाय छे. (प्र०) हे भगवन्! शा हेतुथी 'भावदेव' 'भावदेव' कहेवाय ले १ (उ०) हे गौतम! जे आ भवनपतिओ वानव्यंतरो, ज्योतिष्को वैमानिक देवो देवगति संबन्धी नाम अने गोत्र कर्मोने वेदे छे, ते माटे 'भावदेव' 'भावदेव' कहेवाय छे. ।। ४६१ ।। भवियदव्वदेवा णं भंते! कओहिंतो उबवज्जंति ? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति । तिरिक्ख० मणुस्स० देवेहिंतो उववज्वंति ?, गोयमा ! नेरइएहिंतो उववज्जंति तिरि० मणु० देवेहितोवि उबवजंति, भेदो जहा वर्षातीए सव्वेसु | उबवायव्वा जाव अणुत्तरोववाहयत्ति, नवरं असंखेज्जवासाउय अकम्म भूमग अंतरदीवगसव्वट्टसिद्धवजं जाव अपराजियदेवे हितोवि उववज्जति, णो सव्वट्टसिद्ध देवेहिंतो उववज्जं ति । नरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववजंति ? किं For Private And Personal १२ चक्के उद्देशः ९ ॥११००॥
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy