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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राक्षिः ॥१३०१॥ | उद्देशान १३.१॥ भवंतीति मक्खाया, तासिं दुविहे उद्धारे पण्णत्ते, तंजहा वळी हे आयुष्मान् काश्यप ! जे कोई अमारा सिद्धान्तने अनुसारे मोक्षे गयेला छे, जाय छे अने जशे ते सर्वे चोराशी लाख महाकल्प ( कालविशेष ), सात देवभवो, सात संयूथ निकायो, सात संज्ञीगर्म-मनुष्यगर्भवास, सात प्रवृत्तपरिहार -शरीरान्तरप्रवेश अने पांच लाख, साठ हजार, छसो त्रण कर्मना मेदोनो अनुक्रमे क्षय कर्या पछी सिद्ध थाय छे, बुद्ध थाय छे, मूकाय छ, निर्वाण पामे के अने सर्व दुःखनो अन्त कर्यो छे, करे छे अमे करशे. जेम गंगा महानदी ज्यांथी नीकळे के अने ज्यां समाप्त थाय छे ते | गंगानो अद्धा-मार्ग आयमलंबाइवडे पांचसो योजन छे, विष्कंभ-विस्तार अर्ध योजन छे, अने उडाइमां पांचसो धनुष -ए रीते गंगाप्रमाणे सात गंगाओ मळीने एक महागंगा थाय छे, सात महागंगाओ मळीने एक सादीन गंगा थाय छे, सात सादीन गंगाओ | मळीने एक मृत्युगंगा थाय छे, सात मृत्युगंगा मळीने एक लोहितगंगा थाय छे, सात लोहितगंगाओ मळीने एक अवंतीगंगा थाय छे, सात अवंतीगंगाओ मळीने एक परमावतीगंगा थाय छे. ए प्रमाणे पूर्वापर मळीने एक लाख, सत्तर हजार, छसो अने ओगण पचास गंगा नदीओ थाय छे-एम कहुं छे. ते गंगानदीनी वालुकाकणनो वे प्रकारे उद्धार करो छे, ते आ प्रमाणे सहमयोंदिकलेवरे चेव पायरबोंदिकलेवरे चेव, तत्थ णं जे से सुहमे बोंदिकलेवरे से ठप्पे, तत्थ णं जे से बायरे बौदिकलेवरे तओ णं वाससए ३ गए २ एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोढे खीणे णीरए निल्लेवे निट्टिए भवति सेत्तं सरे सरप्पमाणे, एएणं सरप्पमाणेणं तिन्नि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे, चउरासीह महाकप्पसयसहस्साइं से एगे महामाणसे, अणंताओ संजूहाओ जीवे चयं चहत्ता उवरिल्ले For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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